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२७२ : मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन
१. औद्देशिक—-देवता या पाखण्डी या इन दोनों के निमित्त या सामान्य साधु के निमित्त तैयार किया आहार औदेशिक दोष युक्त है । पात्रानुसार इसके चार भेद इस प्रकार हैं - (१) उद्देश्य जो कोई भी आयेगा उन सबको मैं आहार दूँगा - इस प्रकार सामान्य उद्देश्य से साधित आहार उद्देश्य है । (२) समुद्देश – जो भी पाखण्डी आयेंगे उन सबको मैं भोजन कराऊँगा - इस प्रकार पाखण्डी के उद्देश्य से बनाया गया भोजन समुद्देश है । ( ३ ) आदेश - जो कोई श्रमण अर्थात् आजीवक, तापस, रक्तपट (बौद्ध भिक्षु), परिव्राजक अथवा छात्र आयेंगे उन सभी को मैं आहार दूंगा - इस प्रकार श्रमण के निमित्त बनाया समादेश - जो कोई भी निर्ग्रन्थ साधु प्रकार निर्ग्रन्थों के उद्देश्य से बनाया
गया भोजन आदेश कहलाता है । ( ४ ) आयेंगे उन सभी को आहार दूंगा - इस आहार समादेश हैं ।'
२. अध्यदि दोष :- श्रमण को आया हुआ जानकर अपने लिए पकते हुए चावलादि में (संयमी को देने के लिए) और भी अधिक चावल, पानी आदि मिला देना अथवा जब तक भोजन तैयार न हो जाये तब तक उन्हें रोक लेना अध्यधि दोष है इसे साधिक दोष भी कहते हैं ।
३. पूतिकर्म दोष : अप्रासुक द्रव्य से मिश्र हुआ प्रासुक द्रव्य भी पूतिकर्मदोष से दूषित हो जाता है । यह चूल्हा, ओखली, कलछी, वर्तन और गन्ध के निमित्त से पाँच प्रकार का होता है । 3
४. मिश्र दोष : - पाखण्डियों और गृहस्थों के साथ संयत मुनियों को भी सिद्ध हुआ अन्न देना मिश्र दोष है । *
५. स्थापित दोष :- जिस बर्तन में भोजन पकाया था, बर्तन से अन्य बर्तन में निकाल कर अपने घर में (रसोई घर से अन्य के घर में रखना स्थापित दोष है । ५
६. बलि दोष : - यक्ष, नाग आदि देवों के निमित्त बनाये गये नवेद्य में से अवशिष्ट (बचे हुए) नैवैद्य को बलि कहा गया है । उसे मुनि को आहार में देना अथवा संयतों के आने के लिए बलिकर्म करना बलि-दोष है । "
पकाने वाले उस अन्यत्र ) अथवा
१ मूलाचार ६।६.
२. जावदियं उद्देसो पासंडोत्ति य हवे समुद्देसो । समणोत्तिय आदेसो णिग्गंथोत्ति य हवे समादेसी ॥
- मूलाचार ६।७. वृत्ति सहित, पिण्डनियुक्ति गाथा २३०. ३ - ६. मूलाचार वृत्ति सहित ६१८-१४.
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