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________________ ( २७ ) [ डॉक्टर फूलचन्द जैन, मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन, पृ. ३५ ] उनके उत्तरवर्ती नहीं । कर्म ग्रन्थों में मूलाचार की गायायें : सिद्धान्त ग्रन्थों की भाँति कर्म ग्रन्थों में भी मूलाचार की गाथायें पाई जाती हैं । वस्तुत: भगवान् महावीर द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त की भाँति कर्म साहित्य में भी सामान्यतया मतवैभिन्य की गुंजायश कम ही रही है । कर्मग्रन्थ सम्बन्धी रचनाओं के अनेक नाम ऐसे हैं जो दिगम्बर और श्वेतांबर आम्नाय में समान है । उदाहरणार्थ सयग [ शतक ], सित्तरि [सप्ततिका ], जीवसमास, कसा पाहुड [ कषाय प्राभृत ] पंच संगह [पंच संग्रह ] आदि नाम दोनों सम्प्रदायों में सामान्य हैं । श्वेताम्बरीय पंचसंग्रह में सयग [ शतक ], सित्तरि [ सप्ततिका ], कसायपाहुड़ [ कषाय प्राभृत], छकम्म [ सत्कर्म ] और कम्मपsि [कर्म प्रकृति ] - इन पाँच ग्रन्थों का समावेश किया गया है । विदित है कि आचार्य गुणधर कृत कसायपाहुड़ एक सुप्रसिद्ध दिगंबरीय रचना है । सिद्धांताचार्य पंडित कैलाशचंद्र शास्त्री जी के अनुसार, उपरोक्त पाँच ग्रन्थों में से कसायपाहुड को छोड़कर शेष चार ग्रन्थों का उल्लेख मलयगिरिकृत टीका में मिलता है [जैन साहित्य का इतिहास, १, पू. ३५२] । दिगंबरीय पंच संग्रह जो कर्मस्तव, शतक और सप्ततिका के आधार से लिखा गया है, उसमें जीवसमास, प्रकृतिसमुत्कीर्तन, कर्मस्तव, शतक और सप्ततिका सम्बन्धी विवेचन है । श्वेताम्बरीय सयग पर रचित लघुचूर्णी जैसी कतिपय गाथायें दिगंबरीय भगवती आराधना, पंच संग्रह, गोम्मटसार और द्रव्यसंग्रह के समान पाई जाती हैं [ जैन साहित्य का इतिहास १, पृ. ३१६-१७; देखिने जनदीचंद्र जैन, प्राकृत साहित्य का इतिहास, संशोधित संस्करण, १९८५, पृ० २९० २२] । यहाँ विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि ईसा की १३वीं शताब्दी के सुप्रसिद्ध श्वेतांबरीय विद्वान् देवेन्द्रसूरि कृत पांच कर्म ग्रन्थों की गाथाओं में बट्टकेरकृत मूलाचार की जो समान गाथायें पाई जाती हैं, उनकी सूची प्रोफेसर हीरालाल रसिकदास कापडिया की रचना 'कर्म सिद्धान्त सम्बन्धी साहित्य' [ मोहनलाल जैन ज्ञानभंडार, गोपीपुरा, सूरत, १९६५) में अध्याय ७, पृ. ७५-८६ पर प्रस्तुत की गई है [ देखिये प्रोफेसर चन्द्रभाल त्रिपाठी, स्ट्रासबर्ग की जैन पांडुलिपियों का कैटलाग, सिरियल १०४, पृ. १०४ ] | इससे यही सिद्ध होता है कि इस प्रकार की Jain Education International For Private & Personal Use Only 4 www.jainelibrary.org
SR No.002088
Book TitleMulachar ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1987
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size23 MB
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