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आहार, विहार और व्यवहार : २६५
१५. मांसादि दर्शन - भोजन करते समय मांस, मद्य आदि दिख जाना । उपसर्ग हो जाना ।
१६. उपसर्ग— किसी प्रकार का
१७. पादान्तर जीव—दोनों पैरों के मध्य से किसी पंचेन्द्रिय जीव का निकल जाना ।
१८. भाजनसंपात ----दाता के हाथ से कोई वर्तन गिर जाना ।
१९. उच्चार - आहार करते समय मल विसर्जित हो जाना ।
२०. प्रस्रवण - मूत्र विसर्जित होना ।
२१. अभोज्य गृहप्रवेश - आहारार्थ भ्रमण के समय चाण्डालादि के घर में
"प्रवेश हो जावे तो यह अन्तराय है ।
२२. पतन -- आहार के
- पतन नामक अन्तराय है ।
२३. उपवेशन – किसी कारण से भोजन करते-करते बैठ जाना ।
२४. सदंश कुत्त े, बिल्लो आदि के काटने पर ।
२५. भूमि संस्पर्श - सिद्ध-भक्ति कर लेने के बाद यदि हाथ से भूमि का -स्पर्श हो जावे ।
समय मूर्च्छा आदि से साधु का गिर जाना
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२६. निष्ठीवन - आहार करते समय कफ, थूक आदि का निकलना । २७. उदर-कृमि-निर्गमन - यदि उदर से कृमि (कीड़े) निकल पड़े । २८ अदत्तग्रहण - दाता के दिये बिना ही कोई वस्तु ग्रहण कर लेना । २९. प्रहार — अपने ऊपर या अन्य किसी पर तलवार आदि का प्रहार हो
-जावे ।
३०. ग्रामदाह-यदि ग्राम आदि में अग्नि लग जावे ।
३१. पादेन किञ्चित् ग्रहण – मुनि द्वारा भूमि पर पड़ी कोई वस्तु पैर से -उठाकर ग्रहण कर लेना ।
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३२. करेण - किञ्चित्-ग्रहण - साधु के द्वारा अपने ही हाथ से गृहस्थ को - किसी वस्तु का ग्रहण कर लेना ।
इस प्रकार उपर्युक्त कारणों से सर्वत्र भोजन में अन्तराय होता है । ये आहार-त्याग के लिए कारणभूत हैं । इनके अतिरिक्त और भी बहुत से आहार त्याग के कारण हैं जैसे - राजा का भय या अन्य भय, लोकनिन्दा, संयम और निर्वेदभाव के लिए ।' कुछ ग्रन्थकारों ने चाण्डालादि का स्पर्श, कलह, इष्टमरण, साधर्मिक का सन्यासपूर्वक मरण, किसी प्रधान पुरुष का मरण तथा मौन भंग आदि को भी आहार त्याग का कारण माना है । २
१. मूलाचार ६।८१.
२. मूलाचार वृत्ति ६।८१, अनगार धर्मामृत ५१५९-६०, मूलाचार प्रदीप २।२९.
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