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________________ आहार, विहार और व्यवहार : २६१ दूसरे के द्वारा रोक-टोक से रहित तथा जाने-आने के मार्ग से रहित स्थान में गृहस्थों द्वारा प्रार्थना (पड़गाहना) किये जाने पर ठहरना चाहिए।' आहार (भिक्षा) शुद्धि : विशुद्ध आहारचर्या सच्चे श्रामण्य की महत्वपूर्ण पहचान है। उसके व्रत, शील गुण आदि श्रमणधर्म के सभी आधारभूत गुणों की प्रतिष्ठा भिक्षाचर्या को विशुद्धि पर ही निर्भर है। जो वचनशुद्धि एवं हृदय (मन) शुद्धि पूर्वक भिक्षाचर्या करता है उसे जिन शासन में सुस्थित (सभी सद्गुणों में स्थित) साधु कहा है। ऐसे साधु दूसरे के घर में, नवकोटि आदि से विशुद्ध आहार, अपने पाणिपात्र में, श्रावक आदि दूसरे के द्वारा दिया हुआ ग्रहण करते हैं। नवकोटि अर्थात् मन-वचन-काय तथा कृत-कारित-अनुमोदना से परिशुद्ध 'आहार ।" स्थानांग सूत्र में नवकोटियों का उल्लेख इस प्रकार है-आहार के लिए श्रमण स्वयं जीववध न करे, न दूसरे से करवाए और न करने वाले का अनुमोदन ही करे । न मोल ले, न लिवाए और न लेने वाले का अनुमोदन करे । तथा न पकाए, न पकवाए और न पकाने वाले का अनुमोदन करे। विशुद्ध आहार शंकित, मृक्षित आदि दस दोषों से रहित तथा नख, रोम, जन्तु अर्थात् प्राणरहित शरीर, हड्डी, कण अर्थात् जो आदि का बाहरी अवयव, कुंड्य अर्थात् शाल्य आदि के आभ्यन्तर भाग का सूक्ष्म अवयव, पूय (पीव), चर्म, रुधिर (रक्त), मांस, बीज, फल, कंद और मूल-इन चौदह मलों से रहित होना चाहिए । आहार ग्रहण के समय इनके निकल आने पर तत्काल आहार के त्यागपूर्वक प्रायश्चित्त किया जाता है। आचार्य वट्टकेर ने बताया है कि मुनि को ज्ञान, संयम और ध्यान की सिद्धि तथा यात्रा साधनमात्र के लिए १. भ० आ० गाथा १२०६ की विजयोदया टीका पृष्ठ १२०४. २. वदसीलगुणा जम्हा भिक्खाचरिया विसुद्धिए ठंति । तम्हा भिक्खाचरियं सोहिय साहू सदा विहारिज ॥ मूलाचार १०।११२ ३. वही १०।११३. ४. णवकोडोपरिसुद्ध दसदोसविवज्जियं मलविसुद्ध । भुति पाणिपत्ते परेण दत्तं परघरम्मि ।। वही ९।४५. ५. मूलाचारवृत्ति ६।६३, ९।४५. ६. स्थानांग ९।३०. ७. णहरोमजंतुअट्ठी कणकुंडयपूयिम्मरुहिरमंसाणि । बीयफलकंदमूला छिण्णाणि मला चउद्दसा होति ॥ मूलाचार ६०६५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002088
Book TitleMulachar ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1987
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size23 MB
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