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________________ २६० : मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन है।' प्रासाद, हवेली आदि विशाल भवन द्रव्य से उच्चकुल तथा जाति, धन, विद्या आदि से समृद्ध जनों के भवन भाव से उच्चकुल कहलाते हैं । इसी तरह तृणकुटी, झोपड़ी आदि द्रव्य से निम्न या अवच कुल तथा जाति, धन, विद्या आदि से हीन व्यक्तियों के घर भाव से अवच (निम्न) कुल कहलाते हैं । वस्तुतः आहारार्थ प्रवेश के विषय में भोज्य अभोज्य घरों का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है । क्योंकि अभोज्य घर में प्रवेश को आहार का एक अन्तराय माना है। अभोज्य घर से तात्पर्य हिंसाजीवी, पतित, व्रत-विहीन, संस्कारविहीन तथा निदित घर आदि समझना चाहिए । विजयोदया में दरिद्र कुलों में और आचारहीन सम्पन्नकुलों में प्रवेश का निषेध किया है। क्योंकि दरिद्र कुल में उस घर के व्यक्तियों को स्वयं अपने पेट भरने की समस्या रहती है तब वे मुनि को नवधा भक्ति से आहार कराने में कैसे समर्थ होंगे ? श्वेताम्बर परम्परा में भी निन्दित कुल, अप्रोतिकर कुल तथा मामक (गृह-- स्वामी द्वारा प्रवेश-निषिद्ध) घर में भिक्षार्थ प्रवेश का निषेध है ।५ जुगुप्सनीयकुल से भिक्षा ग्रहण करने वाले को प्रायश्चित्त का भागी माना है। श्रमण को वहाँ भी भिक्षा नहीं लेना चाहिए जहाँ श्रमणपने में क्षीणता का अवसर आये। जैसे राजा, गृहपति (इभ्य, श्रेष्ठी) अन्तःपुर और आरक्षिकों आदि के उस स्थान का मुनि दूर से ही वर्जन करे, जहाँ जाने से उन्हें संक्लेश उत्पन्न हो। विजयोदया में कहा है जिस घर में गाना-नाचना होता हो, झण्डियां लगी हों, मत्त लोग रहते हों, शराबी, वेश्या, लोक में निन्दित कुल, यज्ञशाला दानशाला आदि में न जावे। विवाहवाला घर, प्रवेश वजित, विशेष आरक्षित तथा जिस घर के आगे रक्षक (पहरेदार) खड़े हों-ऐसे घरों में भी नहीं जाना चाहिए। किन्तु जहाँ बहुत से मनुष्यों का आना-जाना हो, जीव-जन्तु से रहित, अपवित्रता रहित, १. कुलं संबंधिसमवातो, तदालयो वा-दशवै० अगस्त्यसिंह चूणि पृष्ठ १०३. २. दशवै० हारिभद्रीय टीका पत्र १६६. ३. मूलाचार ६७९. ४. दरिद्रकुलानि उत्क्रमाढ्य कुलानि न प्रविशेत् । भ० आ० गाथा १२०६ की. विजयोदया टीका, ५. दशवकालिक ५।१।१७. ६. निशीथ १६।१७. ७. दशवकालिक ५।१।१६. . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.002088
Book TitleMulachar ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1987
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size23 MB
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