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२५६ : मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन
न तो अतिशीघ्र चले, न अति धीरे-धीरे चले और न रुक-रुक कर हो । निर्धन या अमीर (धनी) घर का विचार न करे । मार्ग में न ठहरे, न वार्तालाप करे । हंसी आदि न करे। नीच कुलों में प्रवेश न करे । शुद्धकुलों में भी यदि सूतक आदि दोष हो तो वहाँ न जावे । द्वारपाल आदि रोके तो न जावे। जहाँ तक अन्य भिक्षाटन करने वाले जाते हैं वहीं तक हो जावे । जहाँ विरोध के निमित्त हों वहाँ न जावे । दुष्टजन, गधा, ऊँट, भैंस, बैल, हाथी, सर्प आदि से दूर से ही बच कर जावे । मदोन्मत्त जनों से दूर रहे। स्नान, विलेपन, मण्डन तथा रतिक्रीड़ा में आसक्त स्त्रियों की ओर न देखे । धर्मकार्य के बिना किसी के घर न जाये ।' संकल्प (अवग्रह या अभिग्रह) पूर्वक गमन का विधान :
वृत्तिपरिसंख्यान नामक चतुर्थ बाह्य तप के प्रसंग में मूलाचार में कहा है कि भिक्षा से सम्बद्ध कुछ संकल्प या अभिग्रह लेकर आहारार्थ गमन करना चाहिए । जैसे-१. गोचर-प्रमाण-इसके अन्तर्गत घरों के प्रमाण का संकल्प लेकर निकलने का विधान है। २. दाता संकल्प-दाता विशेष अर्थात् यदि वृद्ध, जवान आदि संकल्पानुसार दाता विशेष ही मेरा प्रतिग्रह करेगा (पड़गाहेगा) तभी उसके यहां रुकूँगा अन्यथा नहीं। ३. भाजन संकल्प-कांसे, पीतल आदि धातु या मिट्टी के पात्र (भाजन) विशेष से भिक्षा देगा तो स्वीकार करूँगा अन्यथा नहीं । यह भाजन विषयक संकल्प है । तथा ४. अशन संकल्प-चावल, सक्तू आदि विविध प्रकार के अन्न में से संकल्पित अन्न या भोज्य पदार्थ विशेष मिलेगा तो आहार ग्रहण करूँगा, अन्यथा नहीं। इसी प्रकार और भी अनेक प्रकार के संकल्प ग्रहण करके आहारार्थ गमन करना चाहिए।
भगवती आराधना में भी विविध प्रकार के संकल्प लेकर आहारार्थ गमन करने का उल्लेख है । जैसे-१. गत्वा प्रत्यागता-जिस मार्ग से पहले गया १. मूलाचारवृत्ति ५।१२१ पृ० २६१-२६२. २. मूलाचारवृत्ति ५।१५८, अनगारधर्मामृत स्वोपज्ञवृत्ति ७।२६ पृ० ५०४,५०५. , गत्तापच्चागदं उज्जुवीहि गोमुत्तियं च पेलवियं । सम्बकावपि य पदंगवीधी य गोयरिया ।।
-भगवती आराधना, विजयोदया सहित २१८. पाडयणियंसणभिक्खा परिमाणं दत्तिधासपरिमाणं । पिंडेसणा य पाणेसणा य जागूय पुग्गलया । वही २१९. संसिट फलिह परिखा पुप्फोवहिदं व सुद्धगोवहिदं । लेवडमलेवडं पाणयं च णिस्सित्थगमसिस्थं ॥ वही २२०. पत्तस्स दायगस्य य अवगहो बहुविहो ससत्तीए। इच्चवमादि विधिणा णादव्वा वुत्तिपरिसंखा ॥ वही २२१.....
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