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________________ आहार, विहार और व्यवहार : २५३:. के घरों में से जब धुंआ निकलना बन्द हो जाए तथा मूसल आदि के शब्द शान्तः हो जाएं तब गोचरी के लिए प्रवेश करना चाहिए।' भगवती आराधना की विजयोदया टीका में कहा है कि तीन प्रकार के आहार-काल के विषय में तीन दृष्टियों से विचार करना चाहिए-भिक्षाकाल,. बुभुक्षाकाल और अवग्रहकाल । १. भिक्षाकाल-गाँव, नगर आदि स्थानों में इतना काल व्यतीत होने पर आहार तैयार होता है तथा अमुक महीने में अमुक कुल एवं अमुक मुहल्ले का अमुक समय भोजन-काल है । इस प्रकार इच्छा के प्रमाण आदि से भिक्षा-काल जानना चाहिए। २. बुभुक्षाकाल-मेरी भूख आज तीव्र है या मन्द है-इस प्रकार अपने शरीर की स्थिति की परीक्षा करनी चाहिए। ३. अवग्रहकाल-मैंने पूर्व में यह नियम ग्रहण किया था कि मैं इस प्रकार का आहार नहीं लूंगा और आज मेरा यह नियम है-इस प्रकार विचार करना चाहिए।" श्वेताम्बर परम्परा के उत्तराध्ययन सूत्र में स्वाध्याय, ध्यान, भिक्षाचर्या को उत्तरगुण कहा है। तथा इनके पालन की दिनचर्या चार काल-विभागों में विभाजित की गयी है । तदनुसार मुनि को प्रथम प्रहर में स्वाध्याय, दूसरे प्रहर में ध्यान, तीसरे में भिक्षा तथा चौथे प्रहर में पुनः स्वाध्याय करना चाहिए । इसके अनुसार मुनि के भिक्षा का उपयुक्त समय तीसरा प्रहर माना गया है।" किन्तु सभी दृष्टियों से मूलाचारकार द्वारा उल्लिखित आहार का समय सबसे अधिक उपयुक्त है। यह पहले ही बताया गया है कि मुनि दिन के प्रकाश में ही एक बार आहार ग्रहण करते हैं । दशवकालिक में कहा भी है कि सूर्यास्त से लेकर पुनः जब तक सूर्य पूर्व में न निकल आए तब तक सब प्रकार के आहार की मन में भी इच्छा न करे। दशाश्रुतस्कन्ध के अनुसार जो भिक्षु सूर्योदय और सूर्यास्त १. मूलाचारवृत्ति ५।१२१ पृ० २६१-२६२. २. भ० आ० गाथा १२०६ की विजयोदया टीका पृ० १२०३-४. ३. दिवसस्स चउरो भागे कुज्जा भिक्खू वियक्खणो । तो उत्तरगुणे कुज्जा दिणभागेसु चउसु वि ॥ पढमं पोरिसिं सज्झायं बीयं झाणं शियायई। तइयाए भिक्खायरियं पुणो चउत्थीए सज्झायं ।। उत्तराध्ययन २६।११-१२.: ४. अत्थंगयम्मि आइच्चे पुरत्था य अणुग्गए। आहारमइयं सव्वं मणसा वि न पत्थए ॥ दशवकालिक ८।२८. , . . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002088
Book TitleMulachar ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1987
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size23 MB
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