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________________ २२८ : मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन ४. लाघव--आत्म परिणामों की मलिनता दूर कर, अतिचार रहित अवस्था लाघव (शौच) धर्म है। दूसरे शब्दों में लोभ की पूर्णतः निर्वृत्ति तथा सन्तोष के भाव का नाम लाघव है ।' धनादि द्रव्यों पर आसक्ति या ममत्व का भाव ही सभी आपत्तियों का जनक है । इसका त्याग भी लाघव है ।२ ५. तप-कर्मक्षय के लिए शरीर और इन्द्रियों को तप्त करना तप है । रागादि समस्त परभाव तथा इच्छाओं के त्याग से स्व-स्वरूप में प्रतपनविजयन करना तप है । वस्तुतः तप मनुष्यगति में ही सम्भव है, क्योंकि नरक व देवलोक में औदारिक शरीर का उदय तथा पंच महाव्रत नहीं होते। तिर्यचों में भी महाव्रतों आदि का पालन सम्भव नहीं है । अतः वीतरागता की सिद्धि के लिए धीर-वीर साधुओं को तप का नित्य संचय करना चाहिए।" ६. संयम-सामान्यतः सम्यक रूप से यम-नियन्त्रण को संयम कहते है । धर्म वृद्धि के लिए समिति के पालन में तत्पर श्रमण द्वारा प्राणि रक्षा, इन्द्रिय और कषायों का निग्रह करना संयम है। पञ्च महाव्रतों का धारण, पाँच समितियों का पालन, कषाय निग्रह, मन, वचन, काय-इन तीन दण्डों का त्याग और पंचेन्द्रिय विषयों पर विजय का नाम संयम है। अतः जीवरक्षा में तत्पर जो श्रमण गमनागमनादि कार्यों में तृण-छेद तक के भावों से भी रहित है उसे संयम धर्म होता है। इस धर्म की महत्ता के विषय में कहा है कि “संयम में रत महर्षियों के लिए मुनि-पर्याय देवलोक के समान ही सुखद होता है। तथा जो संयम में रत १. लघो वो लाघवं अनतिचारत्वं शौचं प्रकर्षप्राप्ती लोभनिवृत्तिः-मूलाचार वृत्ति १११५. २. भगवती आराधना वि० टी० ४६, पृ० १५४. ३. तपः कर्मक्षयार्थ तप्यते शरीरेन्द्रियाणि तपः-मूलाचार वृत्ति १११५. ४. समस्तरागादिपरभावेच्छात्यागेन स्वस्वरूपे प्रतपनं विजयनं तपः-प्रवचनसार तात्पर्यवृत्ति ७९।१००।१२. ५. धवला १३१५, ४, ३१, पृ० ९११५. ६. अनगार धर्मामृत ७३१. . ७. धवला २,१,३१७।३. ९. मूलाचार वृत्ति १११५. १०. पंचसंग्रह (प्राकृत) १२७, गोम्मटसार जीवकाण्ड ४६५, पृ० ८७६. ११. कार्तिकेयानुप्रेक्षा ३९९. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002088
Book TitleMulachar ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1987
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size23 MB
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