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२१६ : मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन
८. स्त्रियों के कटाक्षादि, उनके ललित भाषण एवं मीठी हँसी आदि से मन में काम-विकार उत्पन्न न होने देना स्त्री परिषह क्षमण हैं ।
९. मिट्टी, कंकड़, कांटों से युक्त मार्गों पर चलने में भी पीड़ा का अनुभव न करना चर्या परीषह क्षमण है ।
१०. श्मशान, शून्यागार एकान्त आदि स्थानों में वीरासन आदि से ध्यान करते समय होने वाली पीड़ा सहन करना निषद्या परीषह क्षमण है ।
११. तीक्ष्ण आदि विषम भूमि पर एक करवट या दण्डासन से शयन करने में उत्पन्न पीड़ा को सहन करना शय्या परिषह क्षमण है ।
१२. मार्ग में गमन आदि के समय मिथ्यादृष्टि जनों के द्वारा, श्रमण या उसके संघ की निन्दा, अवज्ञा, कटुवचन आदि बोलने पर आक्रोश उत्पन्न न होने देना या उनके द्वारा प्रगट आक्रोश को सहन करना आक्रोश परीषह क्षमण है ।
१३. किसी के द्वारा मुद्गरादि से मारने पर उत्पन्न पीड़ा को सहन करना वध परीषह क्षमण है ।
१४. स्वप्राणघात की भी स्थिति उत्पन्न होने पर औषधि आदि की याचना न करना अयाचन परीषह क्षमण है ।
१५. अन्तराय कर्मों के उदय से आहारादि के प्राप्त न होने पर तद्जन्य अभाव का कष्ट सहना अलाभ परीषह क्षमण है ।
१६. ज्वर, खाँसी आदि प्रकार के विविध रोगों के उत्पन्न होने पर भी चिकित्सा के लिए अधीर न बनकर उस रोग से उत्पन्न वेदना को समभाव से सहन करना रोग परीषह क्षमण है ।
१७. सूखा घास, कर्कश - कठोर मिट्टी आदि स्थानों पर सोने या नंगे पैरों चलने से उत्पन्न पीड़ा के परिहार में जिसका चित्त निरन्तर प्रमादरहित है, उसके तृणस्पर्श परीषह क्षमण जानना चाहिए ।
१८. अस्नान के कारण गर्मी आदि में शरीर से पसीना निकलने, धूल लगने से उत्पन्न बाधा को सहन करना जल्ल परीषह क्षमण है ।
१९. पूजा, प्रशंसा, स्तुति तथा अभिवादन द्वारा किसी अन्य श्रमण का सम्मान होते देख और स्वयं का सम्मानादि न होने पर ईर्ष्याभाव न करना सत्कार- पुरस्कार परीषह क्षमण है ।
२०. विज्ञान (विशेष ज्ञान ) से उत्पन्न गर्व का निरसन करना प्रज्ञा परीषह क्षमण है |
२१. सिद्धान्त, व्याकरण, तर्क आदि शास्त्रों का अज्ञान होने से मन में उत्पन्न संताप से खेद - खिन्न न होना अज्ञान परीषह क्षमण है ।
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