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________________ उत्तरगुण : २०५ रूप आरम्भ (हिंसा) में ही निरन्तर चित्त को लगाये रखना रौद्र ध्यान है।' स्थानांगसूत्र में रौद्रध्यान के चार लक्षण बताये हैं १. उत्सन्नदोष--प्रायः हिंसा आदि में प्रवृत्त रहना, २. बहुदोष-हिंसादि की विविध प्रवृत्तियों में संलग्न रहना, ३. अज्ञानदोष--अज्ञानवश हिंसा आदि में प्रवृत्त होना तथा. ४. आमरण दोष-मरणान्तक हिंसा आदि करने का अनुताप न होना । रौद्रध्यान पंचम देशविरत (संयतासंयत) नामक गुणस्थान तक के जीवों को होता है। उपर्युक्त आर्त और रौद्र-इन दोनों ध्यानों के विषय में वट्टकेर ने कहा है कि--ये दोनों अप्रशस्त ध्यान संसार रूपी महाभय के उत्पादक तथा सुगति अर्थात् देवगति और मोक्ष के सर्वथा प्रतिकूल हैं। अत: इनका त्याग करके धमध्यान और शुक्लध्यान-इन प्रशस्त ध्यानों में सम्यक्तया अपने मन को तत्पर करना चाहिए । प्रशस्त ध्यान : (१)धर्मध्यान-धर्म से युक्त ध्यान धर्मध्यान है । यहाँ धर्म शब्द वस्तुस्वभाव का वाचक है । अतः धर्म अर्थात् वस्तु स्वभाव से युक्त को धर्म्य कहते हैं । आज्ञा, अपाय, विपाक और संस्थान-ये धर्म जिसमें ध्येय होते हैं उस ध्यान को धर्म ध्यान कहा जाता है । कुछ आचार्य क्षमा, मार्दव, आर्जव आदि धर्मों से युक्त होने से भी इसे धर्मध्यान कहते हैं । शिवार्य के अनुसार आर्जव, लघुता, मार्दव, उपदेश और जिनागम में स्वाभाविक रूचि-ये धर्मध्यान के लक्षण हैं । वस्तुतः आर्जव आदि कार्यों से धर्मध्यान पहचाना जाता है अतः आजव आदि धर्मध्यान के लक्षण हैं । स्थानांगसूत्र में धर्मध्यान के ये चार लक्षण बताये हैं-(१) आज्ञारुचि अर्थात् प्रवचन में श्रद्धा होना (२) निसर्ग-रुचि-सत्य में सहज श्रद्धा होना, (३) सूत्र-रुचि-सूत्र पठन से सत्य में श्रद्धा उत्पन्न होना तथा (४) अवगाढ़-रुचि-विस्तृत पद्धति से सत्य में श्रद्धा होना । आलम्बन-ध्यान की एकाग्रता के लिए आलम्बनों का होना आवश्यक हो. १. मूलाचार ५।१९९. २. ठाणं ४।६४ पृष्ठ ३१०. ३. मूलाचार ५।२००. ४. भ० आ० विजयोदया टीका १६९९ १० १५२१. ५. भगवती आराधना १७०९. ६. ठाणं ४।६६ पृ० ३१०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002088
Book TitleMulachar ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1987
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size23 MB
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