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उत्तरगुण : १९९
कालशुद्धि में जो सूत्रग्रन्थ पढ़े जा सकते हैं वे हैं - सर्वज्ञ के मुख से अर्थ ग्रहण करके गणधरों के द्वारा रचित द्वादशांग तथा प्रत्येकबुद्ध, श्रुतकेवली और अभिन्नदश पूर्वी - इनके द्वारा रचित सूत्रग्रन्थ ।' किंतु कालशुद्धि के बिना अस्वाध्याय काल में श्रमणों और आर्यिकाओं के लिए इन सूत्रग्रन्थों को पढ़ना योग्य नहीं है । उपर्युक्त सूत्रग्रन्थों के अतिरिक्त अन्य ग्रन्थ तो कालशुद्धि आदि न होने पर भी अस्वाध्याय काल में पढ़े जा सकते हैं । जैसे आराधनानियुक्ति, मरणविभक्ति, संग्रह, स्तुतियाँ, प्रत्याख्यान, आवश्यक, धर्मकथा तथा इन जैसे और भी अन्याय ग्रन्थ । ३
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उपर्युक्त कालशुद्धि के बिना स्वाध्याय करना ज्ञान का अतिचार है । निशीथ चूर्णि में कहा है कि उचित समय पर किया गया शास्त्र स्वाध्याय या अध्ययन ही कर्म निर्जरा का हेतु है, अन्यथा वह हानिकर एवं कर्मबंध का कारण बन जाता है ।" मूलाचार में कालशुद्धि के साथ ही दिशा आदि से सम्बन्धित उत्पातों या विघ्नों में भी स्वाध्याय करने का निषेध किया है जैसे – १. दिग्दाह-उत्पातवश कभी-कभी दिशाओं का अग्निवर्ण हो जाना । २. उल्कापात अर्थात् पुच्छल तारे का टूटना या तारे के आकार के पुद्गल पिण्ड का गिरना, ३ . बिजली चमकना, ४ चडत्कार अर्थात् मेघों के सघट्ट से वज्रपात होना, ५. ओले गिरना, ६. इन्द्रधनुष दिखना, ७ दुर्गन्ध फैलना, ८. लोहित-पीत वर्ण की सन्ध्या का का होना, ९ दुर्दिन - पानी की सतत् वर्षा होते रहना एवं बादलों का निरन्तर अच्छादित रहना, १० चन्द्र ग्रहण ११. सूर्य ग्रहण, १२. कलह आदि उपद्रव, १३. धूमकेतु १४. भूकम्प, १५. मेघों का गरजना तथा और भी बहुत से दोषों के उपस्थित रहने पर स्वाध्याय वर्जित है ।"
१. सुत्तं गणधरकधिदं तहेव पत्तेयबुद्धिकथिदं च ।
सुदकेवलिणा कधिदं अभिण्णदसपुण्वकधिदं च ।। मूलाचार ५।८०. २ . वही, ५।८१.
३. आराहणाणिज्जुत्ती मरणविभत्ती य संगहत्थुदिओ ।
पच्चक्खाणावासयधम्म कहाओ य एरिसओ | वही ५.८२. ४. निशीथ चूर्णि ११.
५. दिसदाह उक्कपडणं विज्जु चडुक्कासणिदधणुगं च । दुग्गंधसज्झदुद्दिणचंदग्गहसू र राहु जुज्झ च ॥
कलहादिधूम धरणीकंपं च अब्भगज्जं च ।
इच्चेवमाइबहुया सज्झाए वज्जिदा दोसा ।। मूलाचार ५।७७-७८.
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