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उत्तरगुण : १७७ धारणकर प्रायोपगमन मरण करते हैं किन्तु जिनका आयुकाल कुछ दीर्घ है वे विहार करते हुए इंगिनीमरण करते हैं।'
इस प्रकार अनशन तप तथा उसके भेदों के विवेचन से ज्ञात होता है कि इस तप का उद्देश्य शरीर के प्रति सहज निर्ममत्व भाव उत्पन्न करके आत्मसल्लीनता की ओर बढ़ना है। २. अवमौदर्य (अवमोदरिय) तप :
निरुक्ति पूर्वक अर्थ के अनुसार 'अवम' अर्थात् न्यून (कम मात्रा में आहार ग्रहण करने वाला) 'उदर' (पेट) है जिसका वह अवमोदर तथा अवमोदर के भाव एवं कर्म को अवमौदर्य कहते हैं। इसे ऊनोदरिका भी कहा जाता है ।। एक ग्रास या कवल का प्रमाण एक हजार चावल या मुर्गी के अण्डे बराबर माना गया है। मनुष्य का स्वाभाविक कुक्षिपूरक आहार बत्तीस ग्रास (कवल)-प्रमाण तथा स्त्रियों का अट्ठाईस ग्रास प्रमाण होता है । इनमें से एक-एक ग्रास क्रमशः कम आहार ग्रहण करते हुए एक ग्रास तक अथवा “एकसिक्थ" (एक चावल) तक आहार ग्रहण करना अवमौदर्य तप है। पुरुष और स्त्री के उपर्युक्त आहार परिमाण में से एक-दो आदि ग्रास की हानि के क्रम से जब तक एक ग्रास मात्र भी शेष होता है वह अवमोदर्य तप है। जब तक अर्धग्रास ही अवशिष्ट रहे या एकसिक्थ शेष रहे तब तक भी अवमौदर्य है । एक ग्रास के बराबर दो भाग करने पर एक भाग को अर्धकवल कहते हैं । एकसिक्थ (एक चावल) मात्र जो कहा है वह आहार की अल्पता का उपलक्षण है, अन्यथा कोई मात्र एकसिक्थ भोजन के लिए क्यों उद्यत होगा ? वस्तुतः भूख से न्यून आहार लेना जिसमें
१. पडिमापडिमण्णा वि हु करंति पाओवगमणमप्पेगे ।
दीहद्ध विहरंता इंगिणीमरणं च अप्पेगे ॥ भगवती आराधना २०७१. २. अवमं न्यून उदरमस्यावमोदरः । अवमोदरस्य भावः कर्म च अवमौदर्यमिति
भगवती आराधना गाथा २१४ विजयोदया टीका पृष्ठ २३८ (सोलापुर) ३. उत्तराध्ययन ३०८ अनगार धर्मामृत ज्ञानदीपिका ८।२२ पृ० ५०२. ४. मूलाचार वृत्ति ५।१५३. ५. औपपातिक सूत्र १९. ६. भगवती आराधना २११. ७. बत्तीसा किर कवला पुरिसस्सदु होदि पयदि आहारो। _____एगकवलादीहिं तत्तो ऊणियगहणं उमोदरियं ।।
-मूलाचार ५।१५३ वृत्ति सहित. ८. भगवती आराधना गाथा २१२ विजयोदया सहित पृष्ठ ४२८.
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