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________________ १७६ : मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन ३. प्रायोपगमन मरण -- प्रायोपगमन' को पादोपगमन २ या पादपोपगमन भी कहते हैं । अपने पैरों द्वारा संघ से निकलकर योग्य प्रदेश में जाकर जो मरण किया जाय उसे प्रायोपगमन मरण कहते हैं । इसे भी इगिनीमरण के समान विशिष्ट संस्थान और संहनन वाले ही स्वीकार कर पाते हैं । विजयोदया में 'पाउग्गगमणमरणं' इस पाठान्तर का भी उल्लेख करते हुए कहा है कि प्रायोग्य शब्द से तात्पर्य संसार का अन्त करने के योग्य संहनन और संस्थान है । उसके गमन अर्थात् प्राप्ति को प्रायोग्यगमन कहते हैं । उसके कारण होने वाले मरण को प्रायोग्यगमन मरण कहते हैं ।" इसकी विधि भी इगिनीमरण के सदृश है । किन्तु इसमें तृणों के निषेध है । जो अपने शरीर को सम्यक् रूप से कृश करता है मात्र शेष रहता है वही प्रायोगमन मरण करता है। ऐसा क्षेत्र में जिस प्रकार शरीर का कोई अंग रख गया हो वैसा ही पड़ा रहने देता है | स्वयं अपने अंग को हिलाता डुलाता नहीं है । वैसे तो निश्चय से प्रायोपगमन अचल होता है किन्तु उपसर्ग अवस्था में एक स्थान से उठाकर दूसरे स्थान में रख दिये जाने पर यदि वह वहीं मरण करता है तो उसे नीहार ( चल ) कहते हैं और ऐसा नहीं होने पर पूर्व स्थान में ही मरण हो जाए तो उसे अनीहार ( अचल ) कहते हैं ।' भक्तप्रत्याख्यान में तो अपनी सेवा स्वयं भी कर सकता है और दूसरों से भी करा सकता है । इंगिनी में अपनी सेवा स्वयं कर सकता है, दूसरों से नहीं करा सकता । किन्तु प्रायोपगमन में क्षपक को न तो स्वयं अपनी सेवा करने का विधान है और न दूसरों से कराने का । यही उपर्युक्त तीनों में प्रमुख अन्तर है ।" जिनकी आयु काल अल्प ही अवशिष्ट रहता है वे प्रतिमायोग १. मूलाचार ५।१५२. २. भ० अ० गाथा २८ की विजयोदया टीका ३. औपपातिक वृत्ति पृ० ७१. ४. पादाभ्यामुपगमनं ढोकनं तेन प्रवर्तितं मरणं पादोपगमनमरणं - वही, गाथा S २८ की विजयोदया टीका. संस्तर तक का अर्थात् चर्म क्षपक जिस ५. वही. ६. भगवती आराधना गाथा २०६४. ७. भगवती आराधना गाथा २०६५, २०६९ तथा २०७०. ८. वही, गाथा २०६४ की विजयोदया टीका, मूलाचार वृत्ति ५।१५२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002088
Book TitleMulachar ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1987
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size23 MB
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