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१७४ : मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन
पूर्वक भक्त प्रत्याख्यान का समय उपस्थित नहीं रहता और यदि सहसा मरण उपस्थित हो तो अविचार अन्यथा सविचार भक्तप्रत्याख्यान होता है । " भगवती आराधना में सविचार भक्तप्रत्याख्यान का विवेचन करने वाले तथा इसके लिए उपयोगी चालीस अधिकार सूत्र - पदों का इस प्रकार उल्लेख किया गया है?
(१) अरिह अर्ह अर्थात् योग्य, (२) लिंग ( चिह्न ), (३) सिक्खा ( शिक्षा अर्थात् श्रुताध्ययन), (४) विजय ( विनय अर्थात् मर्यादा ), (५) समाधि - शुभोपयोग अथवा शुद्धोपयोग में मन का एकरूप करना, (६) अणियदविहारअनियत क्षेत्र में रहना, (७) परिणाम - अपने कर्त्तव्य की आलोचना, (८) उवधिजहणा --- परिग्रह त्याग, (९) सिदी ( श्रिति अर्थात् श्रेणियाँ या सोपान), (१०) भावणाओ - अभ्यास या उसमें बार-बार प्रवृत्ति, (११) सल्लेहणा - कषाय और शरीर को सम्यक् रीति से कृश करना, (१२) दिसा - मोक्षमार्ग का उपदेशक आचार्य दिशा है, (१३) खमावणा अर्थात् क्षमाग्रहण, (१४) अणुसिट्ठि - अनुशिष्टि अर्थात् सूत्रानुसार शासन या शिक्षाग्रहण, (१५) परगणे - चरिया - दूसरे गण में प्रवृत्ति, (१६) मग्गण - रत्नत्रय की विशुद्धि या समाधिमरण के संपादन हेतु आचार्य का अन्वेषण, (१७) सुट्ठिय-सुस्थित, (१८) उवसंपया - आचार्य के पास जाना उपसंपदा है, (१९) पडिछा - गण, परिचारक, आराधक, उत्साहशक्ति तथा आराधक आहार त्याग में समर्थ है या नहीं - इन सबकी परीक्षा करना, ( २० ) पडिलेहा-आराधना की सिद्धि बिना बाधा के होगी या नहीं तथा राज्य, देश, ग्राम, नगर आदि और वहाँ का प्रधान आराधना के योग्य हैं या नहीं - ऐसा निरूपण करना, (२१) आपुच्छा - किसी आराधक के समाधिमरण हेतु संघ से आचार्य द्वारा पूछा जाना, (२२) पडिच्छण मेगस्सएक क्षपक को स्वीकार करना, (२३) आलोयण, (२४) गुणदोसा - आलोचना के गुण और दोष, (२५) सेज्जा - आराधक के रहने का स्थान शय्या या वसति, (२६) संथार ( संस्तर ), णिज्जावगा - आराधक की समाधि में जो मुनि सहायक होते हैं उन्हें निर्यापक कहते हैं, (२८) पयासणा - अन्तिम आहार का प्रकाशन, (२९) हाणी - -क्रम से आहार का त्याग ( हानि ), (३०) पच्चक्खाण - तीनों प्रकार का आहार त्याग प्रत्याख्यान है, (३१) खामणं -- क्षमाग्रहण अर्थात् आचार्य आदि से क्षमा माँगना, (३२) खमणं - दूसरों के अपराध को क्षमा
१. इंगिणीशब्देन इंगितमात्मनो भण्यते स्वाभिप्रायानुसारेण स्थित्वा प्रवर्त्यमानं मरणं इ ंगिणीमरणं- भगवती आराधना गाथा २९ पृष्ठ ११३. २. भगवती आराधना गाथा ६७-७० विजयोदया टीका सहित |
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