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________________ १७२ • मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन दशमी और कृष्णपक्ष की द्वितीया, षष्ठी तथा द्वादशी - इन छह तिथियों में उपवास और नमस्कार महामंत्र के जप का विधान है । ' एकावली तप की बृहद् विधि के अनुसार एक वर्ष तक प्रतिमास शुक्लपक्ष की एकम, पंचमी, अष्टमी और चतुर्दशी तथा कृष्णपक्ष की चतुर्थी, अष्टमी, और चतुर्दशी - इन सात तिथियों में कुल ८४ उपवास किये जाते हैं । लघुविधि के अनुसार किसी भी दिन से प्रारम्भ करके एक उपवास और एक पारणा के क्रम से ४८ दिनों में २४ उपवास पूरे होते हैं । दोनों विधियों में नमस्कार मंत्र का जाप्य अनिवार्य होता है । इसी प्रकार मुरमध्य, विमान पंक्ति, सिंहनिष्क्रीडित आदि अनेक तपों का विधान तत्संबंधी ग्रन्थों में देखा जा सकता है । २. यावज्जीवन अनशन तप: यह निराकांक्ष अनशन तप है जो मरण समय नजदीक समझ शरीर त्याग पर्यन्त किया जाता है । जब शरीर क्षीण होने लगे, सेवा, स्वाध्याय तप, गुण आदि के पालन में शरीर असमर्थ होने लगे तब इस अनशन तप को ग्रहण किया जाता है। इसे ग्रहण करने वाला श्रमण उत्तमार्थ अर्थात् जो कुछ बाह्य तथा आभ्यन्तर परिग्रह हैं उसे तथा चारों प्रकार के आहार और अपने शरीर का मन, वचन, काय से यावज्जीवन त्याग करने की प्रतिज्ञा करता है । 19 भेद - मूलाचारकार ने यावज्जीवन अनशन तप के भक्तप्रत्याख्यान, इंगिनी - मरण और प्रायोपगमन आदि भेदों का उल्लेख किया है । भगवती आराधना में ७ पंडितमरण के अन्तर्गत इन तीन भेदों की गणना की है । तथा गोम्मटसार कर्मकाण्ड में इन तीनों को मरणविधान की अपेक्षा त्यक्तशरीर के भेद माना है । १. व्रत विधान संग्रह पृष्ठ ७८. २. वही, पृष्ठ ७६. ३. मूलाचारवृत्ति ५ । १५१. ४. ( क ) व्रतविधान संग्रह : (ख) हरिवंशपुराण ३४।३६. ५. मूलाचार ३।११३, ११४. ६. भत्तपइण्णा इंगिणि पाउवगमणाणि जाणि मरणाणि । rora एवमादी बोधव्वा गिरवकखाणि ।। मूलाचार ५११५२. ७. पायोपगमणमरणं भक्तपइण्णा य इंगिणी चेव । तिविहं पंडितमरणं साहुस्स जहुत्तचारिस्स || भगवती आराधना २९. ८. भत्तपइण्णा इंगिणिपाओग्गविहीहि चत्तमिदि तिविहं । - गोम्मटसार कर्मकाण्ड ५९. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002088
Book TitleMulachar ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1987
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size23 MB
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