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________________ ४०० १३६ : मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन कायोत्सर्ग का प्रमाण है।' अन्य स्थानों में इस तरह है-प्राणिवध, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन और परिग्रह के अतिचार में किये जाने वाले कायोत्सर्ग में १०८ उच्छ्वास जप किया जाता है ।२ भक्त, पान (आहार) से आने पर, ग्रामान्तरगमन, अर्हन्त के निर्वाण, समवसरण, केवलज्ञान, दीक्षा, जन्म आदि के स्थानों की वंदनादि करके लौटने पर तथा उच्चार-प्रस्रवण के बाद प्रत्येक में २५-२५ उच्छवास तथा ग्रन्थारम्भ, ग्रन्थसमाप्ति, स्वाध्याय, वंदना तथा प्रणिधान में अशुभभाव के उत्पन्न होने पर इस प्रकार प्रत्येक में २७-२७ उच्छ्वास कायोत्सर्ग का काल प्रमाण हैं। कायोत्सर्ग करते समय यदि उच्छ्वासों की संख्या भूल जाये, या संख्या में संदेह हो जाए तो आठ अधिक (अतिरिक्त) उच्छ्वास कायोत्सर्ग करने का विधान है। उपर्युक्त कालप्रमाण के विभाजन को इस तरह समझा जा सकता है१. दैवसिकं प्रतिक्रमण १०८ उच्छ्वास प्रमाण २. रात्रिक ५४ ३. पाक्षिक ३०० , ४. चातुर्मासिक ५. सांवत्सरिक ५०० ६. प्राणिवधादि रूप अतिचारों में १०८ , " ७. भक्त, पान (आहार) से आने पर तथा ग्रामान्तर गमन आदि में ८. निर्वाणादि भूमि में जाकर आने के बाद ९. अर्हत् शय्या (निर्वाण आदि कल्याण भूमि) । १०. अर्हत् निषद्या ११. श्रमण निषद्या १२. उच्चार-प्रस्रवण करने के बाद १३. ग्रन्थारम्भ में १४. ग्रन्थ समाप्ति में १५. स्वाध्याय में २७ , १६. वंदना १७. प्रणिधान में अशुभ भाव होने पर १८. कायोत्सर्ग के उच्छ्वास भूल जाने पर ८ अधिक" १. मूलाचार ७१६०-१६१. २. वही ७।१६२. ३. वही ७।१६२-१६३. ४. कायोत्सर्गे कृते यदि शक्यते उच्छवासस्य स्खलनं वा परिणामस्य उच्छ्वासाष्टकमधिकं स्थातव्यम् ।-भगवती आराधना विजयोदया टीका -गाथा ११६ पृष्ठ २७८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002088
Book TitleMulachar ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1987
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size23 MB
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