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________________ १३२ : मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन चेष्टा कायोत्सर्ग है । तथा प्राप्त कष्टों को सहन करने, कष्टजनित भय को निरस्त करने तथा विशेष आत्म विशुद्धि के लिए दीर्घकाल तक मन की एकाग्रता का अभ्यास करने के लिए किया जाने वाला अभिभव कायोत्सर्ग है। कायोत्सर्ग की विधि : कायोत्सर्ग के अंग-मलाचारकार ने कायोत्सर्ग के तीन अंग बताये हैं१. कायोत्सर्ग, २. कायोत्सर्गी, ३. कायोत्सर्ग के कारण । इन तीनों में प्रत्येक की प्ररूपणा की जाती है । २ १. कायोत्सर्ग-दोनों हाथ नीचे करके दोनों पैरों में चार अंगुल के अन्तर से समपाद, शरीर के सभी अंगों की चंचलता से रहित निश्चल खड़े होकर कायोत्सर्ग करना विशुद्ध कायोत्सर्ग है ।३।। २. कायोत्सर्गी–जो जीव मोक्षार्थी, निद्राजयी, सूत्रार्थ विशारद, करण (परिणामों से) शुद्ध, आत्मबल और वीर्य युक्त है ऐसे विशुद्धात्मा को कायोत्सर्गी कहा जाता है । क्योंकि यह कायोत्सर्ग मोक्षपथ अर्थात् मोक्षमार्ग रूप रत्नत्रय का उपदेशक और ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय तथा अन्तराय-इन चार घातियाकर्मों के अतिचारों का विनाश करने वाला है। इस कायोत्सर्ग का जिनेन्द्रदेव ने सेवन किया तथा दूसरों को उपदेश दिया। ऐसे ही कायोत्सर्ग को धारण करने की वह इच्छा करता है। ३. कायोत्सर्ग के कारण-एक पैर से खड़े होने पर जो अतिचार होता है तथा द्वेषवश गुप्तियों के उल्लंघन एवं क्रोध, मान, माया तथा लोभइन चार कषायों के द्वारा व्रतों में जो व्यतिक्रम होता है इन सबके तथा षड्जीवनिकाय की विराधना के द्वारा, भय एवं मद-स्थानों के द्वारा जो व्यतिक्रम हुए, साथ ही ब्रह्मचर्य-धर्म में हुए व्यतिक्रमों से उत्पन्न अशुभ कर्मों के विनाशार्थ कायोत्सर्ग किया जाता है । मूलाचारकार ने कायोत्सर्ग के और भी १. मूलाचार ७।१५८. २. काउस्सग्गो काउस्सग्गी काउस्सग्गस्स कारणं चेव । एदेसि पत्तेयं परूवणा होदि तिण्हपि ॥ मूलाचार १५२. ३. वोसरिदबाहुजुगलो चदुरंगुलअंतरेण समपादो। सव्वंगचलणरहिओ काउस्सग्गो विसुद्धो दु॥ वही ७।१५३. ४. मुक्खट्टी जिदणिद्दो सुत्तत्यविसारदो करणसुद्धो। आदबलविरियजुत्तो काउस्स ग्गी विसुद्धप्पा । वही ७१५४. ५. वही ७।१५५. ६. वही ७।१५६, १५७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002088
Book TitleMulachar ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1987
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size23 MB
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