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१२४ : मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन
३. अयोग्य आहार, उपकरणादि पदार्थों के ग्रहण न करने का संकल्प द्रव्यप्रत्याख्यान है ।
४. अयोग्य, अनिष्ट, प्रयोजनोत्पादक संयम की हानि करने वाले, संक्लेशभावोत्पादक क्षेत्रों के त्याग का संकल्प क्षेत्र प्रत्याख्यान है |
५. काल का त्याग शक्य न हो सकने के कारण उस काल में होने वाली क्रियाओं के त्याग का संकल्प काल प्रत्याख्यान है ।
६. अशुभ परिणाम के त्याग का संकल्प भाव प्रत्याख्यान है, इसके मूलगुण प्रत्याख्यान और उत्तरगुण प्रत्याख्यान - ये दो भेद हैं । "
मूलाचारकार ने प्रत्याख्यान के मूलगुणप्रत्याख्यान और उत्तरगुणप्रत्याख्यानदो भेद करके इनके क्षमणादि (आहारत्यागादि) भेदों का संकेत मात्र किया है। और अन्त में प्रत्याख्यान के दस भेदों का विवेचन किया है । ±
१. मूलगुण प्रत्याख्यान - यह यावज्जीवन के लिए ग्रहण किया जाता है । इसके दो भेद हैं: सर्वमूलगुण प्रत्याख्यान (श्रमण के पाँच महाव्रतादि ) तथा देशमूलगुण प्रत्याख्यान (गृहस्थों के पाँच अणुव्रतादि) ।
२. उत्तरगुण प्रत्याख्यान - यह प्रतिदिन एवं कुछ दिन के लिए उपयोगी है । इसके भी दो भेद हैं- पहला है सर्वउत्तरगुण प्रत्याख्यान - अर्थात् जो साधु और श्रावक दोनों के लिए होता है । इसके अनागत, अतिक्रान्त आदि दस भेद हैं । द्वितीय है देशउत्तरगुण प्रत्याख्यान - -जो केवल श्रावकों के लिए है । तीनगुणव्रत और चार शिक्षाव्रत इनके अन्तर्गत आते हैं । 3
सर्व उत्तरगुण प्रत्याख्यान के निम्नलिखित दश भेद ग्रन्थकार ने बताये हैं ।" ( १ ) अनागत - भविष्यकाल विषयक उपवास आदि पहले कर लेना । यथाचतुर्दशी को किया जाने वाला उपवास त्रयोदशी को करना ।
१. भगवती आराधना विजयोदयाटीका गाथा ११६ पृष्ठ २७६-२७७. २. मूलाचार ७१३९, आवश्यक नियुक्ति दीपिका गाथा १५५७. ३. आवश्यक नियुक्ति दीपिका १५५५-१५५७. ४. अणागदमदिकंत कोडीसहिदं णिखंडिदं चेव । सागारमणागारं परिमाणगदं अपरिसेसं ॥ अद्धाणगदं णवमं दसमं तु सहेदुगं वियाणहि । पच्चक्खाणवियप्पा णिरुत्तिजुत्ता जिणमदहि ||
—मूलाचार ७।१४०-१४१, आवश्यकनिर्युक्ति दीपिका १५५९ - १५५६, — तुलना करो— स्थानांग १०।१०१. भगवती ७।२ ( पृ० ९२६, ९९९)
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