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११४ : मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन
और संक्लेश परिणामों से रहित, निष्कपटी, निरभिमानी और निर्लोभी होता है । वह गुरु की सेवा करने तथा सभी को सुख देने वाला होता है ।" उसकी कीर्ति और मैत्री बढ़ती ही रहती है क्योंकि उसमें मान का शीलवान् व्यक्ति के विनययुक्त भाषण से सत्य में अधिक तेजस्विता आती है । उत्तराध्ययन सूत्र में विनयवान् शिष्य के अनेकों उत्कृष्ट गुणों का वर्णन मिलता है । 3 दशकालिक सूत्र के नवम विनय समाधि अध्ययन में भी विनय की विशेष महत्ता और चर्चा है । अतः श्रमण को कि सभी प्रयत्नों से विनय का पालन करते हुए लक्ष्यसिद्धि में तत्पर रहना चाहिए | क्योंकि अल्पज्ञानी पुरुष भी विनयकर्म से अपने कर्मों का क्षय करता है । "
विनयकर्म के सभी भेद-प्रभेदों को चार्ट द्वारा इस प्रकार समझा जा सकता है ।
लोकानुवृत्तिविनय अर्थनिमित्तक विनय कामतंत्रविनय भयविनय मोक्षविनय
T
दर्शन
कायिक
विनयकर्म
ज्ञान
1
हित
चारित्र
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T
1
काल ज्ञान उपधान बहुमान अनिह्नव व्यंजनशुद्ध अर्थशुद्ध व्यंजनार्थोभयशुद्ध
वाचिक
૨
अभाव होता है ।
१. मूलाचार ५। १९०, भगवती आराधना १३०.
२ . वही ५। १९१, वही १३१.
४. दशवैकालिक ९।१।१-२.
तप
मित परिमित अनुमित अकुशल- कुशलमनः प्रवृत्ति
मन-निरोध
अभ्युत्थान सन्नति आसनदान अनुप्रदान प्रतिरूप कृतिकर्म आसनत्याग अनुव्रजन
औपचारिक
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३. उत्तराध्ययन ११।१०-१३. ५. मूलाचार ७।९२.
मानसिक
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