________________
मूलगुण : १११
५. मोक्ष विनय-इस विनय के पांच भेद हैं : दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप और औपचारिक । विनय तप के प्रसंग में भी इन्हीं पाँच भेदों का वर्णन है । मोक्षविनय के इन पांच भेदों का विवेचन प्रस्तुत है
१. दर्शन विनय-जिनेन्द्र द्वारा उपदिष्ट श्रुतज्ञान में वर्णित द्रव्य-पर्यायों में दृढ़ रहना दर्शन विनय है । ३
२. ज्ञान विनय-ज्ञान को सीखना, चिन्तवन करना, ज्ञान का परोपदेश करना, ज्ञानानुसार न्यायपूर्वक प्रवृत्ति करना-ये सब ज्ञान विनयी के लक्षण हैं । कहा भी है कि ज्ञानी मोक्ष को जाता है, वही पापों का त्याग करता है, वही नवीन कर्मों का ग्रहण नहीं करता और वही ज्ञान के द्वारा चारित्र का पालन करता है अतः ज्ञान में विनय और उसका पालन करना ज्ञान विनय है।" ज्ञान विनय के आठ भेद हैं-१. कालविनय-अर्थात् काल शुद्धिपूर्वक द्वादशांगों का अध्ययन करना, २. विनयरूप ज्ञान विनय : अर्थात् हस्त-पाद साफ करके पद्मासनपूर्वक अध्ययन करना, ३. उपधान विनय-अवग्रह विशेष से पढ़ना, ४. बहुमान विनय-ग्रन्थ और गुरु का आदर एवं उनके गुणों की स्तुति करना, ५. अनिह्नव विनय-शास्त्र और गुरु को न छिपाना, ६. व्यंजन शुद्ध-विनय, ७. अर्थशुद्ध विनय और ८. व्यंजनार्थोभय शुद्ध विनय ।।
३. चारित्र-विनय-इन्द्रिय और कषाय के प्रणिधान या परिणाम का त्याग तथा गुप्ति, समिति आदि चारित्र के अंगों का पालन करना चारित्र विनय है । इस विनय में तत्पर मुनि पुरानी कर्मरज को नष्ट करके नवीन कर्मों का बन्ध नहीं करता।
१. दंसणणाण चरित्ते तपविणओ ओवचारिओ चेव ।
मोक्खम्हि एस विणओ पंचविहो होदि णायव्वो ।। मूलाचार ७८७. २. वही ५।१६७.
३. मूलाचार ७।८८. ४. णाणं सिक्ख दि णाणं गुणेदिणाणं परस्स उवदिसदि।
णाणेण कुणदि णायं णाणविणीदो हवदि एसो । वही ५११७१. ५. णाणी गच्छदि णाणी वंचदि णाणी णवं च णादियदि ।
णाणेण कुणदि चरणं तम्हा णाणे हवे विणओ ॥ वही ७।८९. ६. काले विणए उवहाणे बहुमाणे तहेवऽणिण्हवणे । वंजणअत्थतदुभयं विणओ णाणम्हि अट्ठविहो ।।
-वही ५।१७०, भगवती आराधना ११३. ७. वही ५।१७२, भगवती आराधना ११५. ८. वही ७।९०.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org