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मूलगुण : १०९ होकर हाथों की अंजुलि को घुमाकर सबकी वंदना करना अथवा चुरुलित पाठ के अनुसार पंचमादि स्वर से ( गाकर ) वन्दना करना ।
वंदना के ये बत्तीस दोष हैं । इन दोषों से परिशुद्ध होकर जो कृतिकर्म करता है वह साधु विपुल निर्जरा का भागी होता है । २ तथा यदि इन दोषों में से किसी भी एक दोष सहित कृतिकर्म करता है या इन दोषों के निवारण के बिना वंदना करता है तो वंदना से होनेवाली कर्म निर्जरा का वह श्रमण कभी स्वामी नहीं बन सकता 3
विनयकर्म : वन्दना का मूल उद्देश्य जीवन में विनय को उच्च स्थान देना है । जिन शासन का मूल तथा समग्र संघ व्यवस्था का आधार विनय ही है । इसीलिए वन्दना के चार पर्यायवाची नामों में इसे स्वीकृत किया है । ज्ञानावरण, दर्शनावरण आदि आठ कर्मों का ( विनयति) विनाश, चतुर्गति भ्रमण से मुक्ति तथा संसार से विलीन करने वाली विनय है । * श्रमण को स्वर्ग- मोक्षादि के प्रति ले जाने वाला विशिष्ट शुभ परिणाम भी विनय ही है ।" इसीलिए सभी जिनवरों ने मोक्षमार्ग में प्रवृत्ति हेतु सम्पूर्ण कर्मभूमियों के लिए विनय का प्ररूपण किया है । विनय को पंचम गति (मोक्ष) का नायक और मोक्ष का द्वार कहा है । इसी से संयम, तप तथा ज्ञान प्राप्त होता है और आचार्य तथा सम्पूर्ण संघ आराधित होता ।" यह श्रुताभ्यास (शिक्षा) का फल । इसके बिना सारी शिक्षा निरर्थक है । यह सभी कल्याणों का फल भी है ।" धर्मरूपी वृक्ष का मूल विनय है उसका अन्तिम परिणाम (रस) मोक्ष है । इस विनयरूपी
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१. मूलाचार वृत्ति सहित ७।१०६-११०
२. वही ७।११०.
३. वही ७।१११.
४. जह्मा विणेदि कम्मं अट्ठविहं चाउरंगमोक्खो य ।
तम्हा वदंति विदुसो विणओत्ति विलीणसंसारा ।। मूलाचार ७।८१. ५. स्वर्गमोक्षादीन् विशेषेण नयतीति विनयः -- मूलाचार वृत्ति ५।१७५. ६. मूलाचार ७।८२.
७. विणयो पंचमगइणायगो भणियो - मूलाचार ५।१६७.
८. वही ५।१।१८९, भगवती आराधना १२९.
९. विणण विप्पहीणस्स हवदि सिक्खा णिरत्थिया सव्वा ।
विणओ सिक्खाए फलं विणय-फलं सव्वकल्लाणं | वही ५।१८८.
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