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१०२ : मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन
वन्दना के भेद : निक्षेप दष्टि से इसके निम्नलिखित छह भेद हैं।' १-जाति, द्रव्य, क्रिया निरपेक्ष वन्दना की शब्द-संज्ञा नाम वन्दना है । अथवा एक तीर्थकर, सिद्ध और आचार्यादि के नाम का उच्चारण नाम वन्दना है । २वन्दना योग्य महापुरुष की प्रतिकृति अथवा एक तीर्थंकर आचार्य आदि के प्रतिबिम्ब का स्तवन करना स्थापना वन्दना है । ३-इसी तरह एक तीर्थंकर, सिद्ध तथा आचार्यादि के शरीर की वन्दना करना द्रव्यवन्दना है। द्रव्य सामायिक की तरह द्रव्य वन्दना के भी भेदों को समझना चाहिए । ४---जिस क्षेत्र में इन्होंने निवास किया हो उसकी वन्दना करना क्षेत्र वन्दना है । ५-जिस काल में ये रहे हों उस काल की वन्दना करना काल वन्दना है। तथा ६-शुद्ध परिणामों से उनके गुणों का स्तवन एवं वन्दना करना भाव वन्दना है ।
वन्दना का समय : आलोचना, प्रश्न, पूजा, स्वाध्याय आदि के समय तथा क्रोध आदि अपराध हो जाने पर आचार्य, उपाध्याय आदि की वन्दना की जाती है। पूर्वाह्न, मध्याह्न, और अपराह्न इन तीन सन्ध्याकालों में वन्दना का समय छहछह घड़ी है । अर्थात् सूर्योदय के तीन घड़ी पूर्व से तीन घड़ी पश्चात् तक पूर्वाह्न वन्दना । मध्याह्न के तीन घड़ी पूर्व से तीन घड़ी पश्चात् तक मध्याह्न वन्दना । सर्यास्त के तीन घड़ी पूर्व से तीन घड़ी पश्चात् तक अपराह्न वन्दना होती है। आचार्य आदि एकान्तभूमि में पद्यासनादि से स्वस्थचित्त बैठे हों। तब उनकी विज्ञप्ति लेकर वन्दना करनी चाहिए ।' व्याकुलचित्त, निद्रा, विकथा आदि प्रमत्तावस्था तथा आहार-णीहार में युक्त या मल-मूत्रादि उत्सर्ग के समय आचार्यादि की वन्दना नहीं करनी चाहिए।'
वन्दना के पर्यायवाची अन्य नाम-कृतिकर्म, चितिकर्म, पूजाकर्म और विनयकर्म-ये वन्दना के चार नामान्तर हैं।६ वन्दना के ही अन्य नाम होने से इन्हें नाम वंदना भी कह सकते हैं । १. कृतिकर्म-जिससे पूर्वकृत अष्टकर्मों का नाश हो । २. चितिकर्म-जिससे तीर्थकरत्वादि पुण्यकर्म का संचय होता है। ३. पूजाकर्म-जिससे पूजा की जाये अर्थात् अर्हदादि का बहुवचन युक्त शब्दोच्चारण एवं चंदनादि अर्पण करना। तथा ४. विनयकर्म-जिससे सेवा सुश्रुषा की जावे । इस प्रकार जिस अक्षरोच्चारणरूप वाचनिक क्रिया, परिणामों की
१. मूलाचार वृत्तिसहित ७।७८. २. वही ७।१०२. ३. अन गार धर्मामृत ८७९.
४. मूलाचार ७।१०१. ५. वही ७।१००. ६. किदियम्मं चिदियम्मं पूयाकम्मं च विणयकम्मं च-मूलाचार ७।७९.
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