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________________ ९८ : मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन के त्याग पूर्वक अवधृत-नियत काल में होने वाला सामायिक चारित्र है । इसे स्वीकार करते समय सर्वसावध का त्याग किया जाता है, सावद्य योग का विभागशः त्याग नहीं किया जाता । इसमें पाँच महाव्रत आदि रूप से भेद की विवक्षा नहीं होती। अपितु इसकी स्वीकृति से सर्व सावद्य-सदोष-हिंसादि प्रवृत्ति का पूर्णतः त्याग हो जाता है। प्रथम और अन्तिम तीर्थंकर के अतिरिक्त मध्य के बाईस तीर्थंकरों ने इसी का ही उपदेश किया। छेदोपस्थापना चारित्र में विभागशः त्याग किया जाता है। हिंसादि पाँच सावधों का पृथक्-पृथक् त्याग किया जाता है । निरवद्य क्रियाओं में प्रमादवश दोष लगने पर उसका सम्यक् प्रतिकार करना छेदोपस्थापना है । आचार्य वीरनंदि ने कहा है व्रत समिति और गुप्तिरूप तेरह प्रकार के चारित्र में भेद अथवा दोष लगने पर उन दोषों का छेद (नाश) करना और फिर अपने आत्मस्वरूप चारित्र को अपने आत्मा में ही स्थिर रखना छेदोपस्थापना है ।' पूज्यवाद ने कहा है-इन तेरह भेद वाले चारित्र का निरूपण भगवान् महावीर ने किया था। उनके पूर्ववर्ती तीर्थंकरों ने ऐसे विभागात्मक चारित्र का निरूपण नहीं किया।२ आचार्य वट्टकेर ने मूलाचार में प्रथम और अन्तिम तीर्थंकरों द्वारा छेदोपस्थापना चारित्र (संयम) के प्रतिपादन का कारण बताते हुए लिखा है किकथन (परोपदेश) करने में, पृथक्-पृथक् भावित करने में और समझने में सुगमता हो इसीलिए पांच महाव्रतों का वर्णन किया। प्रथम तीर्थंकर के तीर्थ में शिष्य मुश्किल से शुद्ध किये जाते थे। क्योंकि वे अतिशय सरल स्वभाव होते थे। अन्तिम तीर्थकर भगवान् महावीर के तीर्थ में शिष्यजनों से व्रतों का पालन कराना कठिन रहा है। क्योंकि वे अधिक वक्र स्वभाव के थे। साथ ही दोनों तीर्थों के १. आचारसार ५।६-७. २. चारित्रभक्ति ७. ३. वाबीसं तित्ययरा सामाइयसंजमं उवदिसंति । छेदोवट्ठावणियं पुण भयवं उसहो य वीरो य ॥ आचक्खिदु विभजिद् विण्णादुं चावि सुहदरं होदि । एदेण कारणेण दु महन्वदा पंचपण्णत्ता ।। आदीए दुव्विसोधण णिहणे तह सुहु दुरणुपाले य । पुरिमा य पच्छिमा वि हु कप्पाकप्पं ण जाणंति ॥ -मूलाचार ७३६, ३७, ३८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002088
Book TitleMulachar ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1987
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size23 MB
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