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________________ ९६ : मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन (४) क्षेत्र सामायिक-रम्य क्षेत्र जैसे बगीचा, नगर, नदी, कूप, बावड़ी, तालाब, ग्राम, जनपद, नगर, देश आदि में राग और रूक्ष एवं कंटकयुक्त आदि विषम कारणों में द्वषन करना क्षेत्र सामायिक है।' (५) काल सामायिक-पावस, वर्षा, हेमन्त, शिशिर, वसन्त तथा ग्रीष्म इन छह ऋतुओं, रात-दिन, कृष्ण-शुक्ल पक्ष आदि काल विशेषों में राग-द्वेष रहित होना काल सामायिक है। (६) भाव सामायिक-समस्त जीवों के प्रति अशुभ-परिणामों का त्याग एवं मैत्री भाव-धारण करना भाव सामायिक है । सम्पूर्ण कषायों का निरोध तथा मिथ्यात्व को दूरकर छह द्रव्य विषयक निधि, अस्खलित ज्ञान को भी भाव सामायिक कहते हैं। उत्तम सामायिक और प्रशस्त सामायिक का भी मूलाचारकार ने विवेचन किया है। सामायिक करने की विधि और समयः-मूलाचारकार ने द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की शुद्धिपूर्वक अंजुलि को मुकुलित करके (अंजुलिपूर्वक हाथ जोड़कर) स्वस्थ बुद्धि से स्थित होकर अथवा एकाग्र मनपूर्वक आकुलता अर्थात् उलझन रूप विकार रहित मन से आगमानुसार क्रम से भिक्षु को सामायिक करने का निर्देश है।' कार्तिकेयानुप्रेक्षा के अनुसार क्षेत्र, काल, आसन, विलय, मन, वचन और काय की शुद्धिपूर्वक सामायिक में बैठना चाहिए । पूर्वाह्न, मध्याह्न और अपराह्न इन तीन कालों में छह-छह घड़ी सामायिक करना चाहिए । जयधवला के अनुसार तीनों ही सन्ध्याओं का पक्ष और मास के सन्धि दिनों में या अपने इच्छित समय में बाह्य और अन्तरंग सभी कषायों का निरोध करके सामायिक करना चाहिए। . श्वेताम्बर परम्परा के "आवश्यक मूलसूत्र" में कहा गया है कि-"मैं सामायिक करता हूँ, यावज्जीवन सब प्रकार के सावद्ययोग का प्रत्याख्यान करता हूँ, उससे निवृत्त होता हूँ, उसकी निन्दा करता हूँ, अपने आपका त्याग १-३. मूलाचारवृत्ति १११७. ४. वही, ७।२१, २२,२३ तथा ३३. ५. पडिलिहियअंजलिकरो उपजुत्तो उठ्ठिऊण एयमणो। - अवाखित्तो वुत्तो करेदि सामाइयं भिक्खू ॥ मूलाचार ७।३९. ६. कार्तिकेयानुप्रेक्षा गाथा ३५२, ३५४. . ७. कसाय पाहुड जयधवला १।१।१।८१, पृष्ठ ९८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002088
Book TitleMulachar ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1987
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size23 MB
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