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मूल गुण : ९३
राग और द्वेष जिसके माया और लोभ – इन उसके स्थायी सामायिक शासन में कहा गया है । इसीलिए उद्देश्य से भगवान् ने सामायिक
स्थावर आदि सभी प्राणियों में जो मन में विकार उत्पन्न नहीं करते, जिसने चार कषायों आदि को सम्पूर्ण रूप में जीत होता है । ऐसा केवली जिनेन्द्र भगवान् के सावद्ययोग (असत्प्रवृत्ति) का वर्जन करने के को प्रशस्त उपाय बताया है । 3
समभाव युक्त हैं ।" क्रोध, मान, लिया है
सामायिक के भेद - आगमों में किसी भी विषय या वस्तु के विवेचन का निक्षेप "पूर्वक कथन करने का विधान है । इससे अप्रकृत का निराकरण हो कर प्रकृत का निरूपण होता है । इस दृष्टि से नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल, और भाव ये निक्षेप दृष्टि से सामायिक के छः भेद हैं । क्योंकि सामायिक के विषय में इन छह का आलम्बन किया जाता है । जयधवला में द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव - इन चार भेदों का उल्लेख है ।" भगवती आराधना विजयोदया टीका में नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव - इन चार भेदों का उल्लेख है । इसी टीका में मन वचन और काय - इन तीन योगों की दृष्टि से सामायिक के तीन भेद किये गये हैं । १. मन से सर्व सावद्य योगों का त्याग करना मनः सामायिक है । २. सर्व सावद्ययोगों का मैं त्याग करता हूँ — इस प्रकार के वचनों का उच्चारण करना वचन सामायिक है । ३. शरीर से सर्व सावद्य क्रियाओं का त्याग करना कायकृत सामायिक है ।
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सामायिक के पूर्वोक्त छह भेदों का स्वरूप इस प्रकार है
(१) नाम सामायिक शुभ, अशुभ नाम सुनकर राग-द्वेष न करना नाम सामायिक है । " सामायिक में स्थित श्रमण को चिन्तन करना चाहिए कि कोई
१. जो समो सव्वभूदेसु तसेसु थावरेसु य ।
तस्स सामायियं ठादि इदि केवलिसासणे । मूलाचार ७२५.
२. वही ७।२६, २७.
३. सावज्जजोगपरिवज्जणट्ठ सामाइयं केवलिहि पसत्थं -- मूलाचार ७।३३.
४. णामट्टवणा दव्वे खेत्ते काले तहेव भाव य ।
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सामाइयहि एसो णिक्खेओ छव्विओ ओ ।। वही ७।१७.
५. कसायपाहुड, जयघवला १।१।१ ० ८१.
६. भगवती आराधना विजयोदया टोका गा० ११६, पृ० २७४. ७. वही, गाथा ५०९ १० ७२८.
८. मूलाचार वृत्ति ७।१७.
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