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९० : मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन
आवश्यक के छः भेद इस प्रकार बताये हैं-(१) समता (सामायिक), (२) स्तव (चतुर्विंशतिस्तव), (३) वंदना, (४) प्रतिक्रमण, (५) प्रत्याख्यान और (६) व्युत्सर्ग (कायोत्सर्ग)-ये श्रमण के छह अहोरात्रिक अवश्यकरणीय आवश्यक है।' श्वेताम्बर परम्परा में आवश्यक के इन छह भेदों का क्रम प्रायः इस प्रकार मिलता है२-१. सामायिक, २. चतुर्विंशतिस्तव, ३. वंदन, ४. प्रतिक्रमण, ५. कायोत्सर्ग तथा ६. प्रत्याख्यान । १. समता (सामायिक)
प्रथम आवश्यक को मूलाचारकार ने समता (समदा) और सामायिक (सामाइय) इन दोनों नामों से उल्लिखित किया है । जीवन-मरण, लाभ-हानि, संयोगवियोग, मित्र-शत्रु, सुख-दुःख आदि में राग-द्वेष न करके समभाव रखना समता है । इस प्रकार के भाव को सामायिक कहते हैं । अपराजितसूरि ने कहा है-जिसका मन सम है वह समण तथा समण का भाव 'सामण्ण' (श्रामण्य) है । किसी भी वस्तु में राग-द्वेष का अभाव रूप समता 'सामण्ण' शब्द से कही जाती है । अथवा सामण्ण को समता कहते हैं । वही सामायिक है। वस्तुतः सावद्ययोग से निवृत्ति को सामायिक कहते हैं। सामायिक की व्युत्पत्तिमूलक व्याख्या करते हुए केशववर्णी ने लिखा है 'सम' अर्थात् एकत्वरूप से आत्मा में 'आय' अर्थात् आगमन को समाय कहते हैं । इस दृष्टि से परद्रव्यों से निवृत्त होकर आत्मा में प्रवृत्ति का नाम समाय है । अथवा 'सं' अर्थात् सम-राग-द्वष से
१. क-समदा थओ य वंदण पाडिक्कमणं तहेव णादव्वं ।
पच्चक्खाण विसग्गो करणीयावासया छप्पि ॥ मूलाचार ११२२. ख-सामाइय चउवीसत्थव वंदणयं पडिक्कमणं ।
पच्चक्खाणं च तहा काउस्सग्गो हवदि छट्ठो ॥ वही ७.१५. २. देखिए-उत्तराध्ययनसूत्र का २९वां अध्ययन तथा आवश्यकसूत्र आदि ग्रन्थ । ३. मूलाचार १।२२, ७।१५. ४. (क) जीविदमरणे लाभालाभे संजोयविप्पओगे य ।
बंधुरिसुहदुक्खादिसु समदा सामाइयं णाम ।। मूलाचार ११२३. (ख) 'समदा' समभावः जीवितमरणलाभालाभसंयोगविप्रयोगसुखदुःखादिषु
रागद्वषयोरकरणं-भगवती आराधना वि० टीका गाथा ७० ५. समंणो समानमणो समणस्स भावो सामणं क्वचिदप्यननुगतरागद्वषता
समता सामण्णशब्देनोच्यते । अथवा सामण्णं समता । वही गाथा ७१.
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