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मूलगुण : ८७ और असुन्दर है तो द्वेष का हेतु । जो उस रूप में राग और द्व ेष नहीं करके समभाव रखता है वही वीतराग है । "
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२. श्रोत्र न्द्रिय निरोधः -- जिसके द्वारा सुना जाता है वह श्रोत्र इन्द्रिय है । षड्ज, ऋषभ, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत और निषाद- इन सप्त स्वरों ३ तथा वीणा आदि के चेतन-अचेतन, प्रिय-अप्रिय शब्द सुनने से हृदय में उत्पन्न राग-द्वेषादि का मन, वचन और काय से निरोध करना श्रोत्रेन्द्रिय निरोध है । भगवती सूत्र में भी कहा है-- श्रोत्र इन्द्रिय को विषयों की ओर दौड़ने से रोकना, तथा श्रोत्रगत विषयों में राग-द्व ेष न करना श्रोत्रेन्द्रिय निग्रह है ।" जो श्रोत्रेन्द्रिय का निग्रह नहीं करते वे शब्दों के विषय में मूच्छित होकर अपने प्राणों को भी संकट में डाल देते हैं । जैसे मृग शब्दों में गृद्ध होकर अतृप्ति के साथ मृत्यु के मुख में चला जाता ।६
३. घ्राणेन्द्रिय निरोध : जिसके द्वारा गन्ध का ज्ञान हो वह घ्राणेन्द्रिय है | पदार्थ स्वभावतः मनोज्ञ या अमनोज्ञ गन्धयुक्त होते हैं तथा कुछ पदार्थों में अन्य पदार्थों के संयोग से गन्ध उत्पन्न होती है । अतः सुगन्ध में राग और दुर्गन्ध में द्वेष तथा इनमें सुख-दुख का अनुभव न करना घ्राणेन्द्रिय निरोध है । ७
४. रसनेन्द्रिय निरोध - जिसके द्वारा स्वादानुभव किया जाय वह रसनेन्द्रिय है । अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य - रूप चार प्रकार के आहार तथा तिक्त कटु, कषायला, अम्ल और मधुर ये पांच रस - इनको सम्मूर्च्छनादि जीव रहित प्राक आहार दिये जाने पर उनमें गृद्धि न करना रसनेन्द्रिय निग्रह है । "
१. उत्तराध्ययन ३२१२२.
२. श्रूयतेऽनेनेति श्रोतम् - सर्वार्थसिद्धि २।१९.
३. मूलाचारवृत्ति १।१८, नारदशिक्षा ११२१४, नाट्यशास्त्र ६।२७,
४. सड्गादि जीवसद्दे वीणादिअजीवसंभवे सद्दे ।
रागादीण णिमित्तं तदकरणं सोदरोधो दु ।। मूलाचार १।१८. ६. उत्तराध्ययन ३२ ३७.
- पिंगलसूत्र ३।६४.
५. भगवती सूत्र २५७.
७. पयडी वासणगंधे जीवाजीवाप्पगे सुहे असुहे ।
रागद्दे साकरणं घाणणिरोहो मुणिवरस्स ।। मूलाचार १।१९.
८. असणादिचदुवियप्पे पंचरसे फासुगम्हि णिरवज्जे ।
इट्ठाणिट्ठाहारे दत्ते जिन्भाजओ गिद्धी | मूलाचार १।२०.
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