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मूलगुण : ८५ इन्द्रिय निरोध : ___इन्द्र शब्द आत्मा का पर्यायवाची है। आत्मा के चिह्न अर्थात् आत्मा के सद्भाव की सिद्धि में कारणभूत अथवा जो जीव के अर्थ (पदार्थ)ज्ञान में निमित्त बने उसे इन्द्रिय कहते हैं।' प्रत्यक्ष में जो अपने-अपने विषय का स्वतंत्र आधिपत्य करती हैं उन्हें भी इन्द्रिय कहते हैं ।। द्रव्येन्द्रिय
और भावेन्द्रिय-ये इन्द्रिय के दो भेद हैं । द्रव्येन्द्रिय के-स्पर्श, रसना, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र--ये पाँच भेद हैं।४ मूलाचारकार ने इनके आकारों का उल्लेख किया है, जैसे-जिह्वेन्द्रिय का आकार अर्धचन्द्र अथवा खुरपा के समान, घ्राणेन्द्रिय का अतिमुक्तक-(तिल) पुष्प के समान, चक्षु-इन्द्रिय मसूर के सदृश, श्रोत्रेन्द्रिय का आकार जव की नली के समान तथा स्पर्शनेन्द्रिय के अनेक आकार हैं।५ __उपर्युक्त पाँचों इन्द्रियाँ नामों के अनुसार अपने-अपने विषयों में प्रवृत्ति करती हैं । स्पर्शनेन्द्रिय स्पर्श द्वारा पदार्थ को जानती है । इसी तरह रसनेन्द्रिय का विषय स्वाद, घ्राण का विषय गन्ध, चक्षु का विषय देखना तथा श्रोत्र का विषय सुनना है । इन्द्रियों के इन पाँच विषयों को दो भोगों में विभाजित किया जा सकता है-(१) काम रूप विषय, (२) भोग रूप विषय । रस और स्पर्श विषय कामरूप हैं । गन्ध, रूप और शब्द विषय भोगरूप हैं। ये पांचों ही इन्द्रियाँ मूर्तिक पदार्थों को विषय करती हैं।'
१. सर्वार्थसिद्धि १११४. २. प्रत्यक्षनिरतानीन्द्रियाणि....इन्द्रनादधिपत्यादिन्द्रियाणिः-धवला ११११११४. ३. मूलाचार वृत्ति १।१६, सर्वार्थसिद्धि २११६. ४. चक्खू सोदं घाणं जिब्भा फासं च इंदिया पंच ।
सगसगविसएहितोणिरोहियव्वा सया मुणिणा ।। मूलाचार १११६. ५. जवणालिया मसूरिय अतिमुत्तयचंदए खुरप्पे य । इंदिय संठाणा खलु फासस्य अणेयसंठाणं ।। मूलाचार १२१५०,
-धवला १।१।१।३३, गोम्मटसार जीवकाण्ड १७१. ६. मूलाचार ५।१०२, तत्त्वार्थ सूत्र २।२०. ७. कामा दुवे तऊ भोग इंदियत्था विहिं पण्णत्ता।
कामो रसो य फासो सेसा भोगेति आहीया ।। मूलाचार १२।९७. ८. पंचाध्यायी पूर्वार्ध ७१५.
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