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________________ मूलगुण : ८१ (७) इच्छानुलोमा-पूछनेवाले की इच्छा का अनुमोदन करना अर्थात् इसके अनुकूल अपनी इच्छा या अनुमोदन प्रगट करना । यथा-जैसा आप चाहते हैं वैसा ही मैं करता हूँ। (८) संशय-अव्यक्त या संशय युक्त वचन । जैसे 'दन्तरहिता' शब्द कहने से दो-तीन माह की बच्ची का ग्रहण भी हो सकता है और वृद्धा का भी। अतः अभिप्राय की उभयात्मकता के कारण ऐसा वचन असत्यमृषा है। (९) अनक्षरगता-द्वीन्द्रिय आदि तथा असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों की चकार, मकरादि अक्षरों से रहित भाषा अनक्षरगता है। अस्पष्ट आवाज, चुटकी, अंगुलि आदि के संकेत भी इसी के अन्तर्गत आते हैं। जैसे जिस पुरुष ने अंगुलि चटकाने आदि के शब्द या संकेत ग्रहण किये, उसे तो ध्वनि से प्रतीति होती है, दूसरे को नहीं होती। इस तरह यह वचन उभयरूप है। प्रज्ञापनासूत्र में चतुर्थ असत्यामृषा को व्यवहार भाषा कहा है तथा इसके बारह भेद इस प्रकार बताये हैं-आमन्त्रणी, आज्ञापनी, याचनी, पृच्छनी, प्रज्ञापनी, प्रत्याख्यानी, इच्छानुलोमा, अनभिगृहीता, अभिगृहीता, संशयकारिणी, व्याकृत तथा अव्याकृत। इनमें अनिभिगृहीता से तात्पर्य अर्थ पर ध्यान न देकर डित्थडवित्थादि शब्द बोलना । अभिगृहीता अर्थात् अर्थ का अभिग्रहण करके घट-पट आदि शब्दों का उच्चारण करना । व्याकृत से तात्पर्य विस्तार रहित बोलना, जिसमें साफ-साफ समझ में आ जाए । अव्याकृत अर्थात् अतिगम्भीरतायुक्त बोलना जिसे समझना कठिन हो जाए । इस प्रकार भाषा समिति के प्रसंग में वचन (भाषा) के भेद-प्रभेदों के सूक्ष्म विवेचन से ज्ञात होता है कि मुनि को भाषा या वचन-प्रयोग में कितना सावधान रहना पड़ता है। ३. एषणासमितिः--आहार या भिक्षा-चर्या विषयक विवेक । आहार से सम्बन्धित उद्गम-दोष, उत्पादन-दोष तथा आहार ग्रहण में होने वाला अशनदोष-इनसे रहित भोजन, उपधि और शय्या (वसतिका) की शुद्धि करने वाले श्रमण को एषणा-समिति होती है । अर्थात् आहार से संबंधित उद्गम १. मूलाचार वृत्ति ५।११८,११९. २. प्रज्ञापना, पद, ११. ३. उग्गम उप्पादण एसणेहिं पिंडं च उविधि सेज्जं च । सोपंतस्स य मुणिणो परिसुज्झइ एसणासमिदी ॥ मूलाचार ५।१२१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002088
Book TitleMulachar ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1987
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size23 MB
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