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________________ ८० : मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन इसके सम्बन्ध में मिश्रभाषा बोलना जैसे-शीघ्रतावश दिन-रात के प्रारम्भ में ही कह देना कि दिन का दो पहर हो गया या आधी रात बीत गई।' ४. असत्यमृषा (असच्चमोसा)-जो वचन न सत्य होता है और न असत्य अर्थात् जिसमें सत्यता, असत्यता इन दोनों का अभाव हो ऐसे अनुभय रूप पदार्थ के जानने की शक्ति रूप भावमन को चतुर्थ असत्यमृषा या सामान्य वचन कहते हैं । असत्यमृषा वचन के नी भेद है : (१) आमंत्रणी (सम्बोधन युक्त भाषा)-किसी व्यक्ति को कार्य में लगाने से पूर्व उसे बुलाने के लिए प्रयुक्त वचन जैसे-हे देवदत्त यहाँ आओ । इसमें देवदत्त शब्द का संकेत जिसने ग्रहण किया उसको अपेक्षा से यह वचन सत्य है, जिसने संकेत ग्रहण नहीं किया उसकी अपेक्षा असत्य भी है। (२) आज्ञापनी (आज्ञायुक्त वचन)-जैसे स्वाध्याय करो। किसी को यह आज्ञा देने पर क्रिया करने से सत्यता, न करने से असत्यता है । अतः इसे एकान्ततः सत्य और असत्य दोनों नहीं कह सकते । (३) याचनी-जिस भाषा के द्वारा किसी से वस्तु की याचना की जाय । यदि दाता ने वह वस्तु दे दी तो सत्य, न देने पर असत्य । अतः सर्वथा सत्य भी नहीं, असत्य भी नहीं। (४) पुच्छनो-यह क्या है ? इत्यादि रूप प्रश्नसूचक वचन पृच्छनी भाषा है। (५) प्रज्ञापनी-प्ररूपणा करना या किसी को अपना अभिप्राय जिन सूचना-वाक्यों से प्रकट किया जाय। यह भाषा अनेक लोगों को लक्ष्य करके कही जाती है । कोई मनःपूर्वक सुनते हैं और कोई सुनते नहीं, इसकी अपेक्षा इसे असत्यमृषा कहते हैं । (६) प्रत्याख्यानी-पच्चक्खाण करना अर्थात् मैं इस वस्तु का त्याग करता हूँ अथवा मैं यह कार्य नहीं करूंगा-इस तरह के त्यागपूर्ण वचन प्रत्याख्यानी भाषा है। १. चारित्र प्रकाश, दूसरा पुञ्ज प्रश्न ४ पृ० २४-२५. २. आमंतणि आणवणी जायणिसंपुच्छणी य पण्णवणी । पच्चक्खाणी भासा छट्ठी इच्छाणुलोमा य ।। मूलाचार ५।११८. संसयवयणी य तहा असच्चमोसा य अट्ठमी भासा । णवमी अणक्खरगया असच्चमोसा हवदि दिट्ठा । -मूलाचार सवृत्ति ५।११९. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002088
Book TitleMulachar ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1987
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size23 MB
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