________________
मूलगुण : ७९
३. सत्यासत्य (मिश्र)-- वचन का तृतीय भेद सत्यासत्य (सत्यमृषा) तदुभय रूप है । इसके शब्द वाक्य या वचन में सत्यता और असत्यता-दोनों का समावेश रहता है। स्थानोगसूत्र में इसके दस भेद बताये हैं'-उत्पन्न मिश्रक, विगतमिश्रक, उत्पन्नविगतमिश्रक, जीवमिश्रक, अजीवमिश्रक, जीव-अजीवमिश्रक, अनन्तमिश्रक, परीतमिश्रक, अद्धा (काल) मिश्रक और अद्धा-अद्धा (कालांश) मिश्रक ।
(१) उत्पन्न मिश्रक-उत्पत्ति की अपेक्षा मिश्रभाषा बोलना, जैसे-आज सौ बालक पैदा हुए हैं-ऐसा कहना। यदि पूरे सौ बालक उत्पन्न हुए हों तो यह भाषा सत्य है किन्तु न्यूनाधिक उत्पन्न हुए हों तो मिश्र भाषा कही जायेगी।
(२) विगतमिश्रक-मृतकों को अपेक्षा से कहना कि आज सो व्यक्तियों का निधन हुआ।
(३) उत्पन्न विगतमिश्रक-जन्म और मरण दोनों के विषय में कहना कि आज इतने जन्मे और इतने मृत हुये।
(४) जीवमिश्रक-अधिकांश जीवित शङ्ख आदि का ढेर देखकर कह देना कि यह जीवों का ढेर है । अन्दर कई मृत भी हो सकते हैं ।
(५) अजीवमिश्रक-अधिकांश मृतक जीवों का ढेर देखकर अयथार्थ रूप से यह कह देना कि यह मृत जीवों का पिण्ड है ।
(६) जीव-अजीवमिश्रक-जीवित एवं मृत जीवों का मिश्रित ढेर देखकर अयथार्थ रूप से यह कह देना कि इसमें इतने जीवित एवं मृतक है ।
(७) अनन्तमिश्रक-गाजर-मूली आदि अनन्तकाय का ढेर देखकर कह देना - कि यह अनन्तकाय का ढेर है । मूली आदि के पत्ते प्रत्येककाय होने से यह मिश्र भाषा हो जाती है।
(८) परीतमिश्रक-गेहूँ-बाजरा आदि प्रत्येकवनस्पति का खेत देखकर कह देना कि यह सब प्रत्येककाय है। प्रत्येकवनस्पति उगते समय अनन्तकाय होने से उस खेत में नये पौधों की अपेक्षा से अनन्तकाय का होना सम्भव है अतः यह भी मिश्रभाषा है।
(९) अद्धामिश्रक-अद्धा अर्थात् काल । दिन-रात आदि काल के विषय में मिश्रित भाषा बोलना । जैसे—कभी-कभी शीघ्रता वश सूर्य निकलने के पूर्व ही कह देना कि उठो ! सूर्य निकल आया।
(१०) अद्धा-अधामिश्रक-दिन-रात के एक भाग को बदा-अद्धा कहते हैं। १. स्थानांगसूत्र १०.९१.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org