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________________ ७४ : मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन यदि मौन न रह सके तब उसे हिसादि पाप तथा अयोग्य वचनों से रहित योग्य वचन बोलना चाहिए।' वचन (भाषा) के चार भेद है-सत्य, मृषा (असत्य), ३. सत्यासत्य (मिश्र) एवं ४. असत्यमृषा । इनका क्रमशः विवेचन प्रस्तुत है-. १. सत्यवचन : वचन के उपर्युक्त चार भेदों में प्रथम सत्य (सत्य वचन या भाषा) के दस भेद इस प्रकार है-(१) जनपद, (२) सम्मत, (३) स्थापना, (४) नाम, (५) रूप, (६) प्रतीत्य , (७) सम्भावना, (८) व्यवहार, (९) भाव तथा (१०) उपमा। (१) जनपदसत्य-जनपद का अर्थ देश है अतः इसे देशसत्य भी कहते हैं। देश विशेष की अपेक्षा से शब्दों का व्यवहार करना जनपद सत्य है । विभिन्न देशवासियों के व्यवहार में जो शब्द अपने किसी विशिष्ट अर्थ में रूढ़ हो गये हों-जैसे 'ओदन' (भात) शब्द । इस शब्द को द्रविड़ में 'चौर' कहते है । कन्नड़ भाषा में 'कूल' और गौड़ी भाषा में 'भक्त कहा जाता है । इसी तरह चौर, कूल, भक्त आदि विभिन्न देशों की भाषाओं के ये शब्द ओदन अर्थ में रूढ़ हैं। किन्तु एक देश का रूढ़ शब्द दूसरे देश में असत्य भी कहा जा सकता है। फिर भी किसी एक देश की अपेक्षा से कोई इसका प्रयोग करे तो वह सत्य १. मूलाचार ५११२०. २. (अ) वही ५।११०. तथा, तविवरीदं मोसं तं उभयं जत्था सच्चमोसं तं । तविवरीदाभासा असच्चमोसा हवदि दिट्टा ॥ -मूलाचार ५।११७, भगवती आराधना ११९४. (आ) चतुर्विधा वाक्-सत्य, मृषा, सत्यसहिता मृषा, असत्यमृषा चेति । -भगवती आराधना विजयोदया टीका ११९२. ३. जणवदसम्मदठवणा णामे रूवे पडुच्चसच्चे य। संभावणववहारे भावे ओपम्म सच्चे य ।। मूलाचार ५।१११. भगवती आराधना ११९३, गोम्मटसार जीवकाण्ड २२२. ४. जनपदसच्चं जघ ओदणादियवुच्चदि य सव्वभासाए । बहुजणसम्मदमवि होदि जं तु लोए जहा देवी । मूलाचार सवृत्ति ५।११२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002088
Book TitleMulachar ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1987
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size23 MB
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