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________________ ७० : मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन ज्ञान-दर्शनरूप उपयोग सहित) और आलंबन-शुद्धि (देव, गुरू, तीर्थ वंदना आदि आलम्बन अर्थात् प्रयोजन)-इन चार शुद्धियों के आश्रयपूर्वक श्रमणों की गमन रूप प्रवृत्ति को ईर्यासमिति कहा है।' अर्थात् इसके अन्तर्गत ईर्यापथ पर युगप्रमाण (चार हाथ) सामने सावधानी से देखते हुए सदा अप्रमत्तभाव से गमन करने का विधान है। इस तरह जब सूर्य के प्रकाश से समस्त दिशायें प्रकाशमान हो जायें और मार्ग स्पष्ट दिखाई देने लगें तब स्वाध्याय, प्रतिक्रमण देववन्दन आदि नित्यकर्म करे, फिर अपने सम्मुख चार हाथ प्रमाण भूमि को अच्छी तरह से देखते हुए विशुद्ध मन, वचन और काय से सावधानी पूर्वक शास्त्र में उपयोग रखते हुए देव, गुरु और धर्मादि रूप आलम्बन के उद्देश्य से प्रासुक मार्ग (ईर्यापथ) पर गमन करना ईर्यासमिति है । मूलाचार में प्रासुक मार्ग (ईर्यापथ) के लक्षणों के विषय में लिखा है- 'जिस मार्ग पर बैलगाड़ी, यान, युग्य (हाथी, घोड़ा तथा मनुष्यादि के द्वारा खींचा या ढोया जाने वाला), रथ आदि वाहन तथा हाथी, घोड़ा, गधा, ऊँट, गाय, भैंस, गवेलका (बकरा), स्त्री, पुरुष आदि का निरन्तर आवागमन हो, साथ ही वह मार्ग सूर्य-प्रकाश-युक्त तथा कृषीकृत हो वह प्रासुक मार्ग है । श्रमणों को ऐसे ही मार्ग पर चलने का विधान है। सामने की युग-प्रमाण भूमि देखकर गमन विषयक विधान के सम्बन्ध में विचार आवश्यक है। क्योंकि अनेक शास्त्रों में इसका उल्लेख है।" मूलाचार वृत्तिकार वसुनन्दि ने युग-प्रमाण का अर्थ 'चार हाथ प्रमाण' किया १. मग्गुज्जोबुपओगालंबणसुद्धीहिं इरियदो मुणिणो। सुत्ताणुवीचि भणिया इरियास मिदी पवयणम्मि ॥ मूलाचार ५।१०५, भगवती आराधना ११९१. २. इरियावहपडिवण्णेणवलोगंतेद होदि गंतव्वं । पुरदो जुगप्पमाणं सयापमत्तेण संतेण ।। वही ५।१०६. ३. मूलाचारवृत्ति ५।१०५,१०६. ४. मूलाचार ५।१०७-१०९, स्थानांग ५।३, उत्तराध्ययन २५. ५. (क) जुगंतरप्पेहिणा""मूलाचार १.११. (ख) पुरदो जुगप्पमाणं "वही ५।१०६. (ग) जुगमित्तं "उत्तराध्ययन २४।७. (घ) पुरओ जुगमायाए"दशवैकालिक ५।३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002088
Book TitleMulachar ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1987
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size23 MB
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