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________________ मूलगुण : ६९ मरे या जीये, अयत्नाचारी प्रमत्तपुरुष को निश्चितरूप से हिंसा का दोष लगता हैं । किन्तु जो प्रयत्नवान् अप्रमत्त एवं समिति परायण है उसको किसी की हिंसा मात्र से कर्मबन्ध नहीं होता । " समितियाँ प्रवृत्तिपरक होती हैं । इन समितियों में प्रवृत्ति से सर्वत्र एवं सर्वदा गुणों की प्राप्ति तथा हिंसा आदि पापों से निवृत्ति होती है । आस्रव का निरोध तथा पुराने कर्मों की निर्जरा होती है । २ अनन्त जीवों से भरे इस संसार में जीवों की हिंसा से श्रमण उसी तरह लिप्त नहीं होता जैसे स्नेहगुणयुक्त कमलपत्र पानी से लिप्त नहीं होता । और जैसे लोहे का कवच धारण करने वाला योद्धा युद्ध में वाणों की वर्षा होने पर भी वह वाणों से बिद्ध नहीं होता । संसार में अज्ञानी के सदृश ज्ञानी भी प्रवृत्ति करते हैं किन्तु अज्ञानी कर्मों से बँधता रहता है पर ज्ञानी उनसे मुक्त रहता है । उसी तरह समिति-पूर्वक प्रवृत्ति करने वाले जीव की स्थिति है । 3 आचार्य कुन्दकुन्द ने इस समितियों को 'संयम शुद्धि में निमित्तभूत' कहा है । चारित्र एवं संयम की प्रवृत्ति के लिए समिति के पाँच भेद हैं - ( १ ) ईर्ष्या (२) भाषा ( ३ ) एषणा ( ४ ) निक्षेपणादान एवं (५) उच्चारप्रस्रवण (प्रतिष्ठापनिका) । इन समितियों का क्रमशः विवेचन प्रस्तुत है - (१) ईर्या समितिः इसका सामान्य अर्थ है- - गमनागमन विषयक यत्नाचार अर्थात् क्षुद्र जीव भी पैरों के नीचे आकर मर न जाए, ऐसा प्रयत्नमन रहना । कार्यवश दिन के समय अर्थात् सूर्य के प्रकाश में प्रासुक मार्ग से चार हाथ परिमाण भूमि को आगे देखते हुए, जीवों की विराधना बचाते हुए संयमपूर्वक गमन करना ईर्या समिति है । मार्ग-शुद्धि (जीवादि रहित मार्गशुद्धि), ६ -शुद्धि ( सूर्य का प्रकाश), उपयोग शुद्धि (इन्द्रिय विषयों की चेष्टा रहित तथा - १. प्रवचनसार २१७ । २. मूलाचार ५।१३३. ३. वही ५।१२९-१३२. ४. संजमसोहिनिमित्ते खंति जिणा पंचसमिदीओ । चारित्त पाहुड ३७. ५. इरियाभामा एसण णिक्खेवादाणमेव समिदीओ । पादिठावणिया य तहा उच्चारादीण पंचविहा || मूलाचार १।१०, ५ १०४. ६. फासूयमग्गेण दिवा जुगंतरप्पेहिणा सकज्जेण । जंतूणि परिहरतेणिरियासमिदी हवे गमणं ॥ मूलाचार १११, नियमसार ६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002088
Book TitleMulachar ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1987
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size23 MB
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