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मूलगुण : ६५
अन्न-पानादि लाने के बाद गुरु आज्ञापूर्वक ही उनका प्रयोग करना, (३) अवग्रह का अवधारण-क्षेत्र तथा काल की मर्यादापूर्वक वस्तु आदि माँगते समय ही अवग्रह का परिमाण निश्चित कर लेना । (४) अभीक्ष्ण-अवग्रह-याचन-बार-बार आज्ञा-ग्रहणपूर्वक स्थान या वस्तु ग्रहण की याचना, (५) सार्मिक के पास से अवग्रह-याचन-अर्थात् उससे आज्ञापूर्वक स्थान या वस्तु ग्रहण करना । प्रश्नव्याकरण में (१) विविक्त-वासवसति (२) अभीक्ष्ण-अवग्रह-याचन, (३) शय्यासमिति (४) साधारण पिण्ड-पात्रलाभ और (५) विनय-प्रयोग-इन पाँच भावनाओं का उल्लेख है।
४. ब्रह्मचर्य महावत की भावनायें : (१) महिलालोकन-विरति-स्त्रियों पर कुदृष्टि न रखना, (२) पूर्वरति-स्मरण-विरति-पूर्वभुक्त रति का स्मरण न करना, (३) संसक्तवसति विरति-संसक्त द्रव्ययुक्त अथवा सराग वसति का त्याग, (५) विकथा-विरति-स्त्री, चोर आदि विषयक कथा का त्याग, (५) प्रणीतरस विरति-समीहित रसों से विरति ।
इस महाव्रत की प्रायः इसी के आशय की भावनाओं का उल्लेख अन्यान्य जैन ग्रन्थों में मिलता है।
५. संगविमुक्ति महाव्रत की भावनायें : (१) शब्द, (२) स्पर्श, (३) रस, (४) रूप, (५) गंध-पंचेन्द्रिय संबंधित इन पांच विषयों में मनोज्ञ और अमनोज्ञ रूप में राग-द्वेष का वर्जन ही पंचम महाव्रत की पाँच भावनायें हैं। चारित्त पाहुड, आचारांग तथा प्रश्नव्याकरण में भी इन्हीं पाँच भावनाओं का उल्लेख है।" समवायांग में धोत्रेन्द्रिय रागोपरति, चक्षु-इन्द्रिय रागोपरति, घ्राणेन्द्रिय रागोपरति, रसनेन्द्रिय रागोपरति और स्पर्शनेन्द्रिय रागोपरति-ये पाँच भावनायें वर्णित हैं। १. प्रश्नव्याकरण-तृतीय संवर द्वार, अष्टम अध्ययन. २. महिलालोयण पुव्वरदिसरणसंसत्त वसधिविकहाहि । पणिदरसेहि य विरदी य भावणा पंच ब्रह्महि ॥
-मूलाचार ५।१४३, चारित्त पाहुड ३५. ३. आचारांग सूत्र २।३।१५, समवायांग २५. ४. अपरिग्गहस्स मुणिणो सद्दप्फरिसरसरूवगंधेसु ।
रागद्दोसादीणं परिहारो भावणा पंच ।। -मूलाचार ५।१४४, ५. चारित्त पाहुड ३६, आचारांग २।१५. प्रश्नव्याकरण पंचम संवरद्वार, दशम
अध्ययन. ६. समवायांग समवाय २५. (अंगसुत्ताणि भाग १. पृष्ठ ८६३.)
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