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________________ पाँच महाव्रतों की भावनायें : | इस जाने हुए अर्थ का पुनः पुनः चिन्तन भावना है । अथवा आत्मा के द्वारा जो भायीं जाती हैं— उनका बार-बार अनुशीलन करना भावना है । अर्थात् जिन चेष्टाओं और संकल्पों के द्वारा मानसिक विचारों को भावित या वासित किया जाता है उसे भावना कहते हैं । ज्ञान, दर्शन, चारित्र और भक्ति आदि जिस रूप चेष्टायें व अभ्यास हैं, उनसे मानस को भावित किया जाता तरह — महाव्रतों को रखने के लिए मन, वचन और काय की शुद्ध प्रवृत्ति ही भावना है । इन भावनाओं से महाव्रतों का पालन अधिकाधिक शुद्ध होता है । अतः ये भावनायें महाव्रतों की स्थिरता के लिए है । प्रत्येक महाव्रत की पांच-पांच भावनायें इस प्रकार हैं शुद्ध ६ १. हिंसा - विरत महाव्रत की भावनायें : ( १ ) एषणा समिति - भिक्षाचर्या विषयक विवेक या यत्नाचार, (२) निक्षेप - आदान समिति - वस्तुओं को उठानेरखने में विवेक, (३) ईर्या समिति - यत्नाचारपूर्वक गमनागमन करना, (४) मनोगुप्ति- - मन को प्रवृत्ति का संयमन, (५) आलोक्य भोजन - देख - शोधकर दिन के प्रकाश में योग्य समय पर आहार करना । मूलगुण : ६३ उपर्युक्त भावनाओं का पालन जीवों की रक्षा और अहिंसा महाव्रत की पूर्णता हेतु किया जाता है । आचारांग और समवायांग सूत्र तथा चारितपाहुड ग्रन्थों में उल्लिखित इस व्रत की भावनाओं में एषणा समिति के स्थान पर वचन- गुप्ति का उल्लेख है । जबकि प्रश्नव्याकरण में आलोक्य भोजन का उल्लेखनहीं है, इसमें अपाप - वचन ( वचन समिति) भावना को स्वीकृत किया है । १. ज्ञातेऽर्थे पुनः पुनश्चिन्तनं भावना - पंचाध्यायी तात्पर्यवृत्ति पृ० ८६. २. तत्त्वार्थवार्तिक ७।३, १०५३५. ३. भाविज्जइ वासिज्जइ जीए जीवो विसुद्ध चेट्ठाए सा भावणत्ति वुच्चइ । - पासणाह चरियं पृ० ४६०. ४. तत्त्वार्थसूत्र ७१३. ५. मूलाचार ५।१४०-१४४, मूलाचार वृत्ति ५।१४५, उत्तराध्ययन ३१।१७. ६. एसणाणिक्खवादाणिरिया समिदी तहा मणोगुत्ती । आलोय भोयपि य ७. मूलाचार वृत्ति ५ ।१४०. ८. आचारांग २|३ | १५, समवायांग २५, चारित पाहुड ३१. ९. प्रश्नव्याकरण, प्रथम संवरद्वार षष्ठ अध्ययन. Jain Education International अहिंसाए भावणा पंच || मूलाचार ५।१४०. — आचारचूला १५।४४, प्रश्नव्याकरण संवरद्वार १. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002088
Book TitleMulachar ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1987
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size23 MB
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