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________________ मूलगुण : ५३ में दृढ़ता इन्ही मूलगुणों के निमित्त से ही प्राप्त होती है। अतः इन मूलगुणों को छोड़कर शेष उत्तरगुणों के परिपालन में प्रयत्नशील एवं पूजा-प्रतिष्ठा आदि की निरन्तर इच्छा करने वाले श्रमण का प्रयत्न मूलघातक होता है । श्वेताम्बर परंपरा में मूलगुणों की संख्या इस प्रकार निर्धारित नहीं है । इस परम्परा के समवायांगसूत्र में अनगार के सत्ताईस गुणों का उल्लेख आया है(१) प्राणातिपात विरमण, (२) मृषावाद विरमण, (३) अदत्तादान विरमण, (४) मैथुन विरमण, (५) परिग्रह विरमण, (ये पाँच महाव्रत हैं), (६) श्रोत, (७) चक्षु, (८) घ्राण, (९) रसना, (१०) स्पर्श-इन पाँच इन्द्रियों का निग्रह, (११) क्रोधत्याग, (१२) मानत्याग, (१३) माया त्याग, (१४) लोभत्याग, (१५) भाव-सत्य (आन्तरिक पवित्रता), (१६) करण-सत्य (उपधि की पवित्रता), (१७) योग-सत्य, (१८) क्षमा, (१९) विरागता, (२०) मन-समाधारणता, (२१) वचन-समाधारणता, (२२) काय-समाधारणता, (२३) ज्ञान-सम्पन्नता, (२४) दर्शन-सम्पन्नता, (२५) चारित्र-सम्पन्नता, (२६) वेदना-अधिसहन और (२७) मरणान्तिक-अधिसहन ।' श्री शान्तिसूरिकृत उत्तराध्ययन वृहद्वृत्ति में भी अनगार के सत्ताईस गुणों का उल्लेख है। किन्तु यहाँ क्रोध, मान, माया और लोभ-इनका त्याग, योगसत्य, ज्ञान-दर्शन और चारित्र सम्पन्नता–समवायांग में स्वीकृत इन आठ गुणों की गणना न करके रात्रिभोजन-त्याग, पृथ्वी-अप-तेजस्-वायु-वनस्पति-त्रस-इन षट्कायिक जीवों का संयम और योग-युक्तता-ये आठ गुण स्वीकृत किये हैं। शेष समवायांग जैसे ही गुणों का उल्लेख है । परम्परा भेद के अनुसार दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों परम्पराओं में प्रचलित मूलगुणों में अन्तर स्पष्ट है । फिर भी दोनों परम्पराओं में पांच महाव्रत और पाँच इन्द्रिय-निग्रह इनका समान विधान हैं । केशलोच, अस्नान, अदन्त १. पद्यनंदि पंचविंशतिका १, ४० । २. समवायांग समवाय २७।१. ३. वयछक्कमिदियाणं च, निग्गहो भाव करणसच्चं च । खमया विरागयाविय, मणमाईणं णिरोहो य॥ कायाणछक्कजोगम्मि, जुत्त या वेयणाहियासणया । तह मारणंतियऽहियासणया एएऽणगारगुणा ।। -उत्तराध्ययन ३१११८ वृहद्वृत्ति पत्र ६१६ (उत्तरज्झयणाणि भाग-२ टिप्पण पृष्ठ २९९ से उद्धृत) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002088
Book TitleMulachar ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1987
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size23 MB
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