________________
मूलगुण : ५१ उपस्थित (आत्मा के समीप स्थित ) होता हुआ श्रामण्य की सामग्री पर्याप्त (परिपूर्ण) होने से साक्षात् श्रमण होता है ।" जो दर्शन, ज्ञान और चारित्र - इन तीनों में एक ही साथ आरूढ है, एकाग्रता (समस्त परद्रव्य से निवृत्ति) को प्राप्त उस श्रम परिपूर्ण है । इस प्रकार जो श्रमण सदा ज्ञान एवं दर्शनादि में प्रतिबद्ध तथा मूलगुणों में प्रयत्नपूर्वक विचरण करता है वह परिपूर्ण श्रामण्यवान् है । अट्ठाईस मूलगुण :
मुनि जिन मूलगुणों को धारणकर श्रमणधर्म में दीक्षित होता हैं, उनकी निर्धारित अट्ठाईस संख्या इस प्रकार है
पंच य महव्वयाई समिदीओ पंच जिणवरुद्दिट्ठा ।
पंचेविदिहा छप्पिय आवासया लोचो ॥
खिदिसयणमदंत घंसणं
चेव |
अचेलकमण्हाणं ठिदिभोयणेयभत्तं मूलगुणा अट्ठवीसा दु ॥ ५
१. पांच महाव्रतः - हिंसाविरति ( अहिंसा), सत्य, अदत्तपरिवर्जन ( अचौर्य), ब्रह्मचर्य और संगविमुक्ति (अपरिग्रह )
२. पांच समितिः - ईर्ष्या, भाषा, एषणा, निक्षेपादान और प्रतिष्ठापनिका ३. पांच इन्द्रियनिग्रहः - चक्षु, श्रोत्र, घाण, जिह्वा और स्पर्शन
- इनका निग्रह ४. छह आवश्यकः -- समता ( सामायिक), स्तव, वंदना, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान और विसर्ग ( कायोत्सर्ग ) ९
१. आदाय तं पिलिंगं गुरुणा परमेण तं णमंसित्ता ।
सोच्चा सवदं किरियं उवठ्ठिदो होदि सो समणो || प्रवचनसार २०७. २. वही २४२. ३. वही २१४. ४. वदसमिदिदिय रोधो लोचावस्सयमचेलमण्हाणं ।
खिदिसयणमदंतवणं ठिदिभोयणमेगभत्तं च ।। वही २०८.
५. मूलाचार १।२-३.
६. हिंसाविरदी सच्चं अदत्तपरिवज्जणं च बंभं च ।
संगविमुत्ति य तहा महव्वया पंच पण्णत्ता । वही १।४. ७. इरिया भासा एसण णिक्खवादाण मेव समिदीओ ।
पदिठावणिया य तहा उच्चारादीण पंचविहो ॥ १।१०. ८. चवखू सोदं घाणं जिब्भा फासं च इंदिया पंच ।
सगसगविसहितो णिरोहियव्वा सया मुणिणा ।। वही १।१६. ९. समदा थवो य वंदण पाडिक्कमणं तहेव णादव्वं । पच्चक्खाण विसग्गो करणीयावासया छप्पि | वही १।२२.
७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org