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________________ ७४ : जैन और बौद्ध भिक्षुणी-संघ होकर अपना निर्णय देता था। पातिमोवख की वाचना वाले उपोसथ के विपरीत यह किसी भी दिन किया जा सकता था।' उवाद बौद्ध भिक्षुणियों को प्रति १५वें दिन भिक्षु-संघ से उपदेश सुनने के लिए जाना पड़ता था, इस नियम का उल्लंघन करने पर उन्हें प्रायश्चित्त करने का विधान था।२ भिक्षु-संघ से उपदेश सुनने को "उवाद" कहा गया है। उवाद की गणना उपोसथ के पूर्व कृत्य में आती है, अतः यह प्रतीत होता है कि पातिमोक्ख की वाचना के पहले ही उवाद (उपदेश) दे दिया जाता था। प्रारम्भिक नियमों के अनुसार भिक्षु से उपदेश सुनने के लिए प्रत्येक भिक्षुणी की जाना अनिवार्य था, अन्यथा उसे पाचित्तिय दण्ड का प्रायश्चित्त करना पड़ता था। परन्तु कुछ ही समय बाद इस नियम में परिवर्तन आया और बुद्ध ने भिक्षुणी-संघ की दो या तीन भिक्षुणियों को एक साथ उवाद में जाने का विधान बनाया। इससे अधिक की संख्या में जाने पर उन्हें दुक्कट का दण्ड लगता था। यह नियम इसलिए बनाया गया प्रतीत होता है ताकि उपदेश-स्थल पर शान्ति रह सके। पूरे भिक्षुणी-संघ के उपस्थित हो जाने पर कोलाहल सा हो जाता था। ऐसा प्रतीत होता है कि शेष भिक्षुणियां क्रम से उवाद सुनने जाया करती थीं। . वह भिक्षु, जो भिक्षुणियों को उपदेश देने के लिए नियुक्त किया जाता था, भिक्षुणी-ओवादक (भिक्खुनोवादक) कहलाता था । उसका निर्वाचन 'अतिचतुत्थकम्म' के माध्यम से होता था। कन्धे पर उत्तरासंग करके सैकड़ बैठकर, हाथ जोड़कर तथा चरणों में वन्दना करके भिक्ष-संघ से भिक्खुनोवादक चुनने की प्रार्थना की जाती थी। उस समय यदि संघ द्वारा भिक्खुनोवादक भिक्षु को नहीं चुना गया होता था तो भिक्षुणी-संघ को १. महावग्ग, पृ० ३८८-८९. २. पातिमोक्ख, भिवखुनी पाचित्तिय, ५८-५९; पाचित्तिय पालि, पृ० ४३०, चुल्लवग्ग, पृ० ३८४. ३. चुल्लवग्ग, पृ. ३८४; भिक्षुणो विनय, ६९४. . ४. पाचित्तिय पालि, पृ. ७६; चुल्लवग्ग, पृ. ३८४. .. .. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002086
Book TitleJain aur Bauddh Bhikshuni Sangh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArun Pratap Sinh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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