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________________ ७२ : जैन और बौद्ध भिक्षुणी-संघ प्रकार उपोसथागार में पातिमोक्ख की वाचना के पूर्व भिक्षुणियों को छन्द तथा पारिशुद्धि भेजनी पड़ती थी । रोगिणी भिक्षुणी अपनी अदोषता किसी दूसरी भिक्षुणी से भेज सकती थी। इसी को पारिशुद्धि कहा गया है। इसके पश्चात् उतुक्खान अर्थात् संघ को यह बताना पड़ता था कि यह ऋतु का कौन सा उपोसथ है । (बौद्ध धर्म के अनुसार वर्ष में तीन ऋतुएँ होती हैं-हेमन्त, ग्रीष्म तथा वर्षा । प्रत्येक चार मास की होती हैं। चूंकि एक पक्ष में एक उपोसथ होता था, अतः एक ऋतु में आठ उपोसथ होते थे ।) उपोसथागार में उपस्थित भिक्षुणियों की गणना (भिक्खनी-गणना) तथा उनको उपदेश (उवाद) देना पातिमोक्ख नियमों की वाचना के पूर्व ही किये जाते थे। किसी दोष से युक्त भिक्षु अथवा भिक्षुणी को उपोसथ में उपस्थित होने का अधिकार नहीं था। अपने को जब वह दोषों से मुक्त कर लेता था, तभी वह उपस्थित होने का अधिकारी माना जाता था।२ भिक्षुणियों को भिक्षु से अलग उपोसथ करने का विधान था, क्योंकि भिक्षु के पातिमोक्ख उपोसथ में जिन २१ अयोग्य व्यक्तियों (वज्जनीय पूरगल) को उपस्थित होने का निषेध था, उनमें भिक्षुणियाँ भी थीं। भिक्षुणियों की उपस्थिति में पातिमोक्ख वाचना करने से भिक्षु को दुक्कट के दण्ड का प्रायश्चित्त करना पड़ता था। भिक्षुणी-संघ की स्थापना के समय उनके पातिमोक्ख नियमों की आवृत्ति नहीं होती थी। अतः भिक्षु को ही भिक्षुणियों के पातिमोक्ख नियमों की आवृत्ति करने की अनुमति प्रदान की गयी थी, परन्तु कुछ ही समय बाद जनापवाद के भय से बुद्ध ने भिक्षुणियों द्वारा स्वयं पातिमोक्ख नियमों की आवृत्ति करने का विधान बनाया। १. सम्मज्जनी पदीपो च उदकं आसनेन च .. उपोसथस्स एतानि पुब्बकरण न्ति वुच्चति छन्दपारिसुद्धि उतुक्खानं भिक्खुनी-गणना च ओवादो उपोसथस्स एतानि पुब्बकिच्चन्ति वुच्चति । . . -भिक्खुनी पातिमोक्ख, निदान, सांकृत्यायन, राहुल (अनुवादक), विनयपिटक, पृ० ३९. २. महावग्ग, पृ० ११६-२७. ३. न, भिक्खवे, भिक्खुनिया निसिन्नपरिसाय पाति मोक्खं उद्दिसितब्ब" -वही, पृ० १४१. ४. चुल्लवग, पृ० ३७९-८०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002086
Book TitleJain aur Bauddh Bhikshuni Sangh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArun Pratap Sinh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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