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७० : जैन और बौद्ध भिक्षुणी-संघ उपासक संघ को विहार-दान देना चाहता हो, किसी भिक्षु, भिक्षुणी, शिक्षमाणा, श्रामणेरी, उपासक या उपासिका का कोई कार्य हो, तो भिक्षु संदेश मिलने पर सप्ताह भर के लिए जा सकता था। यदि कोई भिक्षु रोगी हो, उसका मन संन्यास से उचट गया हो, धर्म के प्रति संदेह उत्पन्न हो गया हो, मन में बरी धारणा उत्पन्न हो गई हो तो भिक्ष बिना संदेश मिलने पर भी सप्ताह भर के लिए जा सकता था। भिक्षुणियों को इस प्रकार वर्षाकाल में आवास त्यागने का नियम था या नहीं, इसका स्पष्ट उल्लेख प्राप्त नहीं होता है। तुलना ____दोनों संघों की भिक्षुणियों को वर्षा के चार महीने एक स्थान पर व्यतीत करने का निर्देश दिया गया था। वर्षाकाल में यात्रा करने पर सूक्ष्म जीव-जन्तुओं तथा सद्यः उत्पन्न पादपों की हिंसा हो सकती थीअतः उन्हें कहीं आने-जाने का निषेध था। दोनों संघों में भिक्षुणी को अकेले वर्षावास व्यतीत करने की अनुमति नहीं थी। साथ में दो या तीन भिक्षुणियों का होना आवश्यक था। ये नियम उनकी शील-सुरक्षा के हो दृष्टिकोण से बनाये गये थे। बौद्ध भिक्षुणियों को भिक्षु-संघ के साथ ही वर्षावास व्यतीत करने का निर्देश दिया गया था, क्योंकि बौद्ध भिक्षुणियों के प्रवारणा, उपोसथ तथा उवाद (उपदेश) जैसे धार्मिक कृत्य बिना भिक्षुसंघ की उपस्थिति के नहीं हो सकते थे। किन्तु जैन भिक्षणियों को उपोसथ या प्रवारणा (प्रतिक्रमण) के लिए भिक्षु-संघ के समक्ष उपस्थित होना अनिवार्य नहीं था; अतः बौद्ध भिक्षुणियों के विपरीत जैन भिक्षुणियां भिक्षुसंघ के अभाव में भी अपना वर्षावास व्यतीत कर सकती थीं। बौद्ध भिक्षुणियों के उपोसथ का विधान ... बौद्ध संघ में उपोसथ करने का विधान था। भिक्षुणियों के लिए निर्धारित अष्टगुरुधर्म में उन्हें यह निर्देश दिया गया था कि वे प्रति पन्द्रहवें दिन भिक्षु-संघ से उपोसथ की तिथि पूछकर उसमें शामिल हों। उपोसथ में शामिल न होने पर उन्हें पाचित्तिय का दण्ड लगता था।' बौद्ध संघ में उपोसथ-परम्परा का विधान दूसरे मतावलम्बियों (अञ्चतित्थिया परिब्बाजका) की देखा-देखी शुरू किया गया था। क्योंकि एक
१. पातिमोक्ख, भिक्खुनी पाचित्तिय, ५९. २. महावग्ग, पृ० १०४.
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