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यात्रा एवं आवास सम्बन्धी नियम : ६९ था जिसका उल्लंघन नहीं किया जा सकता था। भिक्खुनी पाचित्तिय में भी ठीक यही नियम था। ये नियम भिक्षुणियों की सुरक्षा की दृष्टि से बनाये गये थे। परन्तु इन नियमों के निर्माण में इसके अतिरिक्त भी निम्न अन्य कारण थेःप्रवारणा के कारण निषेध
भिक्षुणी को यह निर्देश दिया गया था कि वह वर्षावास के तुरन्त बाद दोनों संघों (भिक्षु तथा भिक्षुणी-संघ) के समक्ष प्रवारणा करे ।२ प्रवारणा में वर्षावास में हये दष्ट, श्रत तथा परिशंकित अपराधों की संघ को जानकारी करानी पड़ती थी-तभी वह शुद्ध मानी जाती थी। अतः भिक्षुणियों के लिए यह आवश्यक हो जाता था कि वे भिक्षुओं के साथ ही वर्षावास करें ताकि वर्षावसान के बाद प्रवारणा के लिए भिक्षु-संघ की तलाश में इधर-उधर भटकना न पड़े। उपोसथ के कारण निषेध
उपोसथ के नियमों के कारण भी भिक्षुणी को अकेले वर्षावास करने का निषेध किया गया था। संघ के नियमानुसार भिक्षुणियों को प्रति पन्द्रहवें दिन उपोसथ की तिथि पूछनी पड़ती थी तथा उपदेश सुनने का समय ज्ञात करना पड़ता था। अतः इस धार्मिक अनिवार्यता की पूर्ति हेतु भी भिक्षुणियों के लिए भिक्षु-रहित स्थान में वर्षावास करना असम्भव था। ___ उपर्युक्त जिन मुख्य कारणों से भिक्षुणी को अकेले वर्षावास करने से मना किया गया था, उनमें सर्वाधिक महत्त्व का प्रश्न उनके शील की सुरक्षा का था, जिसके लिये समुचित व्यवस्था की गयी थी। परन्तु इससे भिक्षुणियों की निम्न स्थिति की सूचना भी मिलती है। उनका कोई भी कार्य भिक्षु-संघ की सहमति अथवा उनकी उपस्थिति के बिना सम्भव नहीं था । वर्षाकाल में वर्षावास करते हुए भिक्षुणियों को कहीं भी आनेजाने का निषेध किया गया था। भिक्षओं को वर्षावास के स्थान को कुछ विशेष परिस्थितियों में त्यागने का भी विधान था। जैसे-कोई १. पातिमोक्ख, भिक्खुनी पाचित्तिय, ५६. २. वही, ५७ ; पाचित्तिय पालि, पृ० ४२८-२९. ' ३. पातिमोक्ख, भिक्खुनी पाचित्तिय, ५९. ४. महावग्ग, पृ० १४५-१५५.
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