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यात्रा एवं आवास सम्बन्धी नियम : ६५ में फेंक दे, तो भिक्षुणी को बिना घबड़ाये या अप्रसन्न हुये, शरीर का कोई भाग एक दूसरे से न सटाते हुये, यथासम्भव जलकाय जीवों की रक्षा करते हुये सावधानीपूर्वक तैरने का निर्देश दिया गया था। परन्तु जल में तैरते हुये उसे आनन्द के लिए डुबकी आदि लेने का निषेध किया गया था। नदी के किनारे पहुँच जाने पर भी उसे पानी को पोंछने या वस्त्र निचोड़ने की आज्ञा नहीं थी।
बृहत्कल्पसूत्र में पाँच महानदियों का उल्लेख है जिनको नाव आदि में बैठकर पार करने के लिए एक बार तो आने-जाने की आज्ञा थी, परन्तु दो-तीन बार आने-जाने का निषेध किया गया था। ये नदियाँ निम्न हैंगंगा, यमुना, सरयू, कोशिका और माही । भाष्यकार ने महानदी से तात्पर्य सिन्ध और ब्रह्मपुत्र से भी लगाया है। इनके अतिरिक्त ऐसी छोटी नदियों में, जिनमें कम पानी होता था, सामान्य रूप से दो या तीन बार आनेजाने का विधान था। दिगम्बर भिक्षुणियों के यात्रा सम्बन्धी नियम : दिगम्बर भिक्षु-भिक्षुणियों को भी वर्षा के चार महीने छोड़कर शेष आठ महीने इतस्ततः भ्रमण करने का निर्देश दिया गया था। भिक्षुणी को जीव-जन्तुओं से रहित रास्ते से उद्विग्नतारहित होकर शान्तचित्त से यात्रा करने का निर्देश दिया गया था। उसे उस रास्ते पर यात्रा करने का निषेध किया गया था जिस पर बैलगाड़ी (शकट), यान, पालकी (जुग्ग), रथ, हाथी, घोड़े, ऊँट आदि का हमेशा आवागमन हो ।
दिगम्बर भिक्षुणियों के यात्रा सम्बन्धी नियम विस्तृत रूप से प्राप्त नहीं होते हैं। यह अनुमान करना अनुचित नहीं कि इनके भी नियम श्वेताम्बर सम्प्रदाय की भिक्षुणियों के समान ही रहे होंगे।
बौद्ध भिक्षुणी के यात्रा सम्बन्धी नियम-बौद्ध संघ में भी भिक्षुणियों के लिए भ्रमण करना अनिवार्य था। शिक्षमाणा को अपनी प्रवत्तिनी के साथ कम से कम पाँच या छः योजन तक भ्रमण करने का निर्देश दिया गया था । कोई भी भिक्षुणी अकेली यात्रा नहीं कर सकती थी। उसे अकेली नदी
१. बृहत्कल्पमूत्र, ४/३४. २. वही, ४/३५. ३. मूलाचार, ४/१०१.
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