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________________ यात्रा एवं आवास सम्बन्धी नियम : ६३ (१) साध्वी के माता-पिता यदि दीक्षा के लिए उद्यत हों, (२) यदि उसके माता-पिता शोक से विह्वल हों, तो उन्हें सान्त्वना प्रदान करने के लिए, (३) प्रत्याख्यान (समाधिमरण) की इच्छुक साध्वी यदि अपने गुरु के पास आलोचना के लिए जाय, (४) साधु या साध्वी की वैयावृत्य (सेवा) के लिए, (५) अपने पर क्रुद्ध साधु या साध्वी को शान्त करने के लिए, (६) शास्त्रार्थ के लिए आह्वान करने पर, (७) आचार्य का अपहरण कर लिये जाने पर उनके विमोचन के लिए । इसी प्रकार के अन्य कारणों के उपस्थित होने पर भिक्षुणी को यदि अराजक राज्यों से जाना आवश्यक हो तो उन्हें निर्देश दिया गया था वे सर्वप्रथम सीमावर्ती आरक्षक से इसके लिए अनुमति लें, उसके निषेध करने पर नगर-सेठ से अनुमति लें तथा उसके भी निषेध करने पर सेनापति से तथा अन्त में स्वयं राजा से अनुमति लेने का प्रयत्न करें। इनकी अनुमति प्राप्त होने पर ही ऐसे राज्यों के मध्य से यात्रा करने का विधान था।' बृहत्कल्पसूत्र में भिक्षु-भिक्षुणियों को पूर्व दिशा में अंग-मगध तक, दक्षिण दिशा में कौशाम्बी तक, पश्चिम दिशा में स्थूण (स्थानेश्वर) तक तथा उत्तर दिशा में कुणाल (श्रावस्ती) देश तक यात्रा करने का निर्देश दिया गया है। इसे आर्य क्षेत्र कहा गया है। बृहत्कल्पभाष्यकार ने भारतवर्ष में २५३ आर्य-देश माने हैं जिनके नाम निम्न हैं : मगध, अंग, कलिंग, काशी, कोशल, कुरु, सौर्य, पांचाल (काम्पिल्य), जांगल (अहिच्छत्र), सौराष्ट्र, विदेह, वत्स (कौशाम्बी), संडिब्भ (नंदीपुर), मलय (भदिलपुर), वच्छ (वैराट), अच्छ (वरणा), दशार्ण, चेदि, सिन्धुसौवीर, सूरसेन, भुंग (पावा), कुणाल (श्रावस्ती), पुरिवट्ट (मास ?), लाट (कोटिवर्ष) तथा अर्द्धकेकय ।। ___ इन्हीं क्षेत्रों में साधु-साध्वियों को यात्रा करने का निर्देश दिया गया था । इसका कारण यह बताया गया है कि भिक्षु-भिक्षुणियों को इन क्षेत्रों में आहार तथा उपाश्रय की सुलभता रहती है तथा यहाँ के लोग जैन आचार-विचार से परिचित होते हैं। इसका एक अन्य कारण यह भी १. बृहत्कल्पभाष्य, भाग तृतीय, २७८४-९१. २. बृहत्कल्पसूत्र, १/५२. ३. बृहत्कल्पभाष्य, भाग तृतीय, ३२६३. . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002086
Book TitleJain aur Bauddh Bhikshuni Sangh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArun Pratap Sinh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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