________________
५८ : जैन और बौद्ध भिक्षुणी-संघ
वस्त्र की स्वच्छता : वस्त्र की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता था । वस्त्र को धोकर उसे बाँस या रस्सी के सहारे टाँगने की सलाह दी गयी थी । मासिक-धर्म सम्बन्धी आवसत्थचीवर नामक वस्त्र को तीन दिन के प्रयोग के पश्चात् चौथे दिन धो देने का विधान था, ताकि अन्य ऋतुमती भिक्षुणियाँ उसको उपयोग में सकें । ' इसी प्रकार अणिचोल नामक वस्त्र को किसी एकान्त स्थान में गया था । ऐसे वस्त्र को स्त्री तीर्थ, पुरुष - तीर्थ तथा रजक तीर्थं अर्थात् पुरुषों, स्त्रियों एवं धोबियों के घाटों पर धोने का निषेध था । २ बौद्ध भिक्षुणियों की अन्य आवश्यक वस्तुएँ
ला
धोने का निर्देश दिया
बौद्ध भिक्षुणियों को भी वस्त्र के अतिरिक्त पात्र, सूची (सूई) आदि रखने का विधान था । अधिक पात्रों का संचय करना निषिद्ध था । पुराना पात्र तभी हटाया जा सकता था, जब उसमें कम से कम पाँच जगह छेद हो गये हों । इसी प्रकार भिक्षुणी को हड्डी या दाँत आदि की सूचीघर निर्मित करवाने की अनुमति नहीं थी । " बौद्ध भिक्षु को घड़ा, झाडू, नखच्छेदन (नहन्नी), कर्णमलहरणी ( कनखोदनी), अंजनदानी तथा अंजनसलाई, दतवन (दन्तकट्ठ) आदि रखने की अनुमति दी गई है । Some have wide or narrow borders, others have small or large flaps, the Sang-Kio-Na covers the left shoulder and conceals the two armpits. It is worn open on the left and closed on the right. It is cut longer than the waist, the Ni-Fo- Si-Na has neither girdle nor tassels, When putting it on, it is plaited in folds and worn round the lions with a cord fastening. The schools differ as to the colour of this garment: Both yellow and red are used.
-- Buddhist Record of the western world, Vol. II. P. 134.
१. पाचित्तिय पालि, पृ० ४१४.
२. भिक्षुणी विनय, २६९, २७०, २७१.
३. पातिमोक्ख, भिक्खुनी निस्सग्गिय पाचित्तिय १.
४. वही, २४.
५. वही, भिक्खुनी पाचित्तिय, १६२.
६. महावग्ग, पृ० २१९-२२८.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org