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________________ ५६ : जैन और बौद्ध भिक्षुणी-संघ कुंजरहीनक विहार बनवाकर भिक्षुओं को दवाएँ तथा भिक्षुणियों को यथेच्छ चावल दिया था। इसी प्रकार सिंहल-नरेश महातिस्स ने नगर के ३०,००० भिक्षुओं तथा १२,००० भिक्षुणियों को चीवर प्रदान किये थे । एक विहार बनवाने के बाद उस राजा ने ६०,००० भिक्षु और ३०,००० भिक्षुणियों को पुनः वस्त्र प्रदान किये । इस अवसर पर भिक्षु-भिक्षुणियों को ६ वस्त्र देने का उल्लेख है अर्थात् प्रत्येक भिक्षु-भिक्षुणी को अन्तरवासक, उत्तरासंग तथा संघाटी का एक-एक जोड़ा दिया गया था। संघ में चीवर-प्रदान करने की विधि ___ बौद्ध संघ में वस्त्र को चोवर के नाम से जाना जाता था। संघ में भिक्षु-भिक्षुणियों को वस्त्र प्रदान करने का जो समारोह किया जाता था, उसे कठिन कहते थे। संघ में चूंकि वस्त्र-प्रदान बड़े पैमाने पर किया जाता था, अतः उसके प्रबन्ध के लिए कई पदाधिकारियों को नियुक्त किया गया था। दान दिये गये वस्त्र को संघ की तरफ से जो ग्रहण करता था उसे 'चीवरपटिग्गाहक" कहते थे। इस पद का चुनाव संघ की अनुमति से होता था तथा वही व्यक्ति चुना जाता था जो द्वेष, मोह तथा भय से रहित हो तथा जो स्वेच्छाचारी प्रवृत्ति का न हो। प्राप्त किये गये वस्त्र का जो प्रबन्ध करता था उसे "चीवर-निदहक" कहते थे। वस्त्र जिस कोठरी में रखा जाता था उसे "भण्डागार" तथा उसके रक्षक को "भाण्डागारिक" कहते थे। इन पदाधिकारियों में भी उपर्युक्त गुण का होना आवश्यक था। जो पदाधिकारी भिक्षु-भिक्षुणियों को वस्त्र बाँटता था उसे "चीवर-भाजक" कहते थे । भिक्षु-भिक्षुणी आवश्यकता से अधिक प्राप्त वस्त्र को बिना प्रयोग किये अधिक से अधिक १० दिन तक अपने पास रख सकते थे। इस नियम का उल्लंघन करने पर उन्हें निस्सग्गिय पाचित्तिय का दण्ड भोगना पड़ता था। चीवर-काल : बौद्धसंघ में चीवर बाँटने का समय भी निर्धारित था। चोवर-काल आश्विन पूर्णिमा से कार्तिक पूर्णिमा तक रहता था। कुछ लालची भिक्षुणियाँ चीवर-प्राप्ति की आशा कम होने से चीवर-काल की १. महावंस, ३३/२७-२८. २. वहो, ३४/७-८. ३. महावग्ग, पृ० ३००-३०२. ४. पातिमोक्ख, भिक्खुनी निस्सग्गिय पाचित्तिय, १३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002086
Book TitleJain aur Bauddh Bhikshuni Sangh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArun Pratap Sinh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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