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आहार तथा वस्त्र सम्बन्धी नियम : ५५ रूमाल आदि), परिक्खारचोलक (थैले आदि की तरह का वस्त्र) तथा उदकशाटिका' (भिक्षुणियों के नहाने का वस्त्र) आदि । ___अनुपयुक्त वस्त्र : भिक्षुणियों को लाल, मजीठ, काले तथा हल्दी रंग से रंगे वस्त्र धारण करने की अनुमति नहीं थी। उनके लिए कटी किनारी वाले, लम्बी किनारी वाले, फूलदार किनारी वाले या सर्प के फन के आकार की किनारी वाले वस्त्रों को धारण करना निषिद्ध था। ऐसा वस्त्र पहनने पर उन्हें दुक्कट के दण्ड का भागी बनना पड़ता था। सुन्दर दिखने के लिए वे लम्बा कमरबन्द नहीं धारण कर सकती थीं तथा कमरबन्द में पंछ भी नहीं लटका सकती थीं। वस्त्र गवेषणा सम्बन्धी नियम
बौद्ध संघ में भी भिक्षुणियों को वस्त्र ग्रहण करने में अत्यन्त सतर्कता रखनी पड़ती थी। यदि वस्त्र-दाता की भावना अच्छी नहीं रहती थी, तो वे वस्त्र लेने से इन्कार कर देती थीं।
यद्यपि प्रारम्भ में उपसम्पदा के समय भिक्षुणियों को जो तीन निश्रय बताए जाते थे, उनमें उन्हें फटे-चीथड़े वस्त्र (पंसुकूलचीवर) धारण करने का निर्देश दिया गया था। लेकिन साथ ही उपासकों द्वारा भी भिक्षुभिक्षुणियों को बड़ी मात्रा में वस्त्र लेने की अनुमति प्रदान कर दी गयी । उदाहरणस्वरूप-प्रसिद्ध उपासिका विशाखा ने भिक्षुणियों को उदकशाटिका (नहाने का वस्त्र) वस्त्र प्रदान किया था। काशी नरेश ने जीवक की सेवाओं से प्रसन्न होकर उन्हें ५०० कम्बल प्रदान किये थे, उन सभी कम्बलों को जीवक ने संघ के उपयोगार्थ बुद्ध को समर्पित कर दिया। महावंस से ज्ञात होता है कि सिंहल में विहार की प्रतिष्ठा के समय भिक्षुभिक्षुणियों को अन्न-वस्त्र दिया जाता था। लंजतिस्स ने अरिदृविहार और
१. महावग्ग, पृ० ३०६; भिक्षुणी विनय, $ १८९. २. चुल्लवग्ग, पृ. ३८७. ३. वही, पु० ३८७-३८८. ४. वही, पृ० ३८६. ५. महावग्ग, पृ० ५५. ६. वही, पृ० २९७. ७. वही, पृ० ३०६. ८. वही, पृ० २९८.
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