________________
आहार तथा वस्त्र सम्बन्धी नियम : ५३ भिक्षुओं को पाणिपात्र बताया गया है। उन्हें हाथ में ही भिक्षा लेकर ग्रहण करने का विधान था । सम्भवतः भिक्षुणियों को भी भिक्षु के समान भिक्षा-पात्र रखना निषिद्ध था । यद्यपि शरीर-शुद्धि के लिए जल-ग्रहण हेतु वे कमण्डलु रख सकती थीं। भिक्षु-भिक्षुणियों को रजोहरण (पिच्छि) रखने की अनुमति दी गई थी । मोर के पंख का रजोहरण उत्तम माना जाता था। बौद्ध भिक्षुणी के वस्त्र सम्बन्धी नियम
जैन संघ के समान बौद्ध संघ में भी वस्त्र के सम्बन्ध में अत्यन्त सतर्कता बरती जाती थी। भिक्षुणियाँ और भी सावधानी रखती थीं। इसका प्रमुख कारण उनकी शारीरिक भिन्नता थी, जिसके प्रति उन्हें सचेत रहना पड़ता था। यदि असावधानी के कारण भी वक्षस्थल या रजस्वला-काल में वस्त्र पर रक्त के धब्बे दिखायी पड़ जाते थे, तो समाज के लोग उनकी हँसी उड़ाते थे। इसीलिए उसे यह निर्देश दिया गया था कि गाँव या नगर में जाते समय वह शरीर को भलो-भांति ढंक कर जाय ।२ बिना कंचुक गाँव में जाना उसके लिए निषिद्ध था।
उपयुक्त वस्त्र : बौद्ध संघ में भिक्षु-भिक्षुणियों को छ: प्रकार के वस्तुओं से निर्मित वस्त्र (चीवर) को धारण करने की अनुमति थी।
१. खौम-क्षौम से निर्मित वस्त्र २. कप्पासिकं-कपास से निर्मित ३. कोसेय्य-कौशेय से निर्मित ४. कम्बल-ऊन से निर्मित ५. साण-सन से निर्मित
६. भंग-अलसी आदि की छाल अथवा उक्त पाँचों के मिश्रण से निर्मित
वस्त्र को संख्या : प्रारम्भ में बौद्ध भिक्षु-भिक्षुणियों को केवल तीन प्रकार के वस्त्र धारण करने का विधान था। (१) संघाटी, (२) उत्तरा
१. सुत्तपाहुड़, १०-१३; मूल चार, ५/१२२. २. पातिमोक्ख, भिक्खुनी सेखिय, १; पाचित्तिय पालि, पृ० ४७८. ३. वही, भिक्खुनी पाचित्तिय, ९६; पाचित्तिय पालि, पृ० ४७९-८०. ४. महावग्ग, पृ० २९८; पाचित्तिय पालि, पृ० ४१०.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org