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५२ : जैन और बौद्ध भिक्षुणी-संघ
रयत्ताणं (रजस्त्राण), (७) गोच्छअ (गोच्छक), (८-१०) पच्छाया (तीन प्रच्छादक) (११) रयोहरण (रजोहरण), (१२) मुहपोत्ति (मुँहपत्ती) (१३ मत्तए (मात्रक), (१४) कमढए (कमठक)।
उपर्यक्त २५ उपकरणों तथा उनकी अन्य आवश्यक वस्तुओं को तीन कोटियों-उत्कृष्ट, मध्यम, जघन्य में विभाजित किया गया था ।' उत्कृष्ट आवश्यकता में आठ वस्तुएँ थीं-तीन वस्त्र, भिक्षा-पात्र, अभ्यन्तरनिवसिनी, बहिनिवसिनी, संघाटिका, स्कन्धकरणी । मध्यम आवश्यकता में १३ वस्तुएँ थीं-रजोहरण, पटलकानि, पात्रक-बन्ध, रजस्त्राण, मात्रक, कमठक अवग्रहानन्तक, पत्त, अर्कोलक, कंचुक, चलनिका, औपकक्षिकी, वैकक्षिकी । जघन्य आवश्यकता में चार वस्तुएँ थीं-मुखपोतिका, पात्रकेसरिका, गोच्छक, पात्रस्थापन । इसके अतिरिक्त भी उन्हें सूची (सूई), नखहरणी, कर्णशोधनी, दन्तशोधनी, चिलमिलिका, पादलेखनिका आदि उपकरण रखने का विधान था।२ । दिगम्बर भिक्षुणी के वस्त्र सम्बन्धी नियम
दिगम्बर सम्प्रदाय के अनुसार मुनि को निर्वस्त्र रहना चाहिए । इसके अनुसार वस्त्रधारी पुरुष मोक्ष नहीं प्राप्त कर सकता भले ही वह तीर्थंकर क्यों न हो। इसी आधार पर इस सम्प्रदाय में स्त्री-मक्ति की अवधारणा का निषेध किया गया। शारीरिक रचना तथा सामाजिक परिस्थितियों के कारण भिक्षुणी के लिए यह सम्भव न था कि वह निर्वस्त्र रहे। इसी कारण भिक्षुणी को एक वस्त्र धारण करने का निर्देश दिया गया था, जिसे वह आहार ग्रहण करते समय भी धारण किये रह सकती थी। दिगम्बर भिक्षुणी को अन्य आवश्यक वस्तुएँ
दिगम्बर भिक्षुणियों के वस्त्र के अतिरिक्त पात्र आदि रखने के सम्बन्ध में क्या नियम थे-इसकी स्पष्ट सूचना नहीं प्राप्त होती । दिगम्बर
१. बृहत्कल्पभाष्य, भाग चतुर्थ, ४०१५. २. वही, भाग चतुर्थ, ४०९६-९८. ३. सुत्तपाहुड़, २३. ४. वही, २२.
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