________________
आहार तथा वस्त्र सम्बन्धी नियम : ५१ पर, शिला पर, वृक्ष के तने पर या महल की छत आदि पर भीगे वस्त्र न फैलावे ।'
यदि इन निषेधों का अवलोकन करें तो हमें इन सारे नियमों में जैन धर्म का अहिंसावादी दृष्टिकोण परिलक्षित होता है। किसी भी परिस्थिति में सूक्ष्म जीव की हत्या न हो-इसका विशेष ध्यान रखा जाता था। ___यदि साध्वी से वस्त्र खो जाय तो उसे दूसरा वस्त्र लेना निषिद्ध था । इसी प्रकार उसे एक वस्त्र के बदले दूसरा वस्त्र बदलने की अनुमति नहीं थी। सुन्दर वस्त्र के खो जाने अथवा उसके चुरा लिए जाने के भय से वस्त्र को विकृत करना निषिद्ध था । इसके अतिरिक्त दूसरा वस्त्र पाने की लालच में अपने वस्त्र को उधार देना दण्डनीय था । यात्रा के लिए या भिक्षावृत्ति के लिए जाते समय चोर या डाकू यदि वस्त्र छीनने का प्रयत्न करें तो भिक्षुणी को यह निर्देश दिया गया था कि वह वस्त्र को सावधानीपूर्वक जमीन पर रख दे । वस्त्र सुरक्षित रखने की लालच में वह न तो चोर या डाकू की प्रशंसा करे और न उसके हाथ-पैर जोड़े। साध्वी को यह भी सलाह दी गयी थी कि वह इस घटना की चर्चा किसी गृहस्थ अथवा राज्याधिकारी से न करे । जैन भिक्षुणी की अन्य आवश्यक वस्तुएं
भिक्षुणियों को ११ प्रकार के वस्त्र के अतिरिक्त १४ अन्य प्रकार के उपकरण रखने की अनुमति दो गई थी। ऐसा प्रतीत होता है कि परवर्तीकाल में उनकी आवश्यकताओं की वृद्धि के साथ ही उनके उपकरणों में भी वृद्धि होती गई। बृहत्कल्पभाष्य तथा ओघनियुक्ति में भिक्षु'णियों के निम्न १४ प्रकार के उपकरणों के उल्लेख हैं।"
(१) पत्त (पात्र), (२) पत्ताबंध (पात्रक-बंध), (३) पायठ्ठवणं (पात्रस्थापन), (४) पायकेसरिया (पात्रकेसरिका), (५) पडलाइं (पटलानि), (६)
१. आचारांग, २/५/१/२०-२२. २. वही, २/५/२/३. ३. वही, २/५/२६. ४. वही, २/५/२/७-८. ५. ओघनियुक्ति, ६६७-७१; बृहत्कल्पभाष्य, भाग चतुर्थ, ४०८०-८३..
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org